तमाम कोशिशों के बावजूद रेल हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे। हर हादसे के बाद खामियों को दुरुस्त कर लेने के वादे और इरादे दोहराए जाते हैं, मगर फिर वही ढाक के तीन पात निकल आते हैं। शुक्रवार की शाम चेन्नई से दरभंगा जा रही बागमती एक्सप्रेस कवरैप्पेटूटै स्टेशन पर खड़ी माल गाड़ी से टकरा गई। टकराने से गाड़ी के एक डिब्बे में आग लग गई और करीब पांच डिब्बे पटरी से उतर गए। बीती जून में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में कंचनजंघा एक्सप्रेस भी इसी तरह मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिसमें लोकोपायलट समेत दस लोगों की मौत हो गई थी। उसके कुछ दिनों बाद ही जुलाई में चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही गाड़ी उत्तर प्रदेश के गोंडा में पटरी से उतर गई थी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई और सात लोग घायल हुए थे।
पिछले एक साल में ही ओड़ीशा के बालासोर के बाद अब तक करीब आठ बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। हर हादसे के बाद रेलमंत्री चिंता जताते, मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा करते और जल्दी ही रेल दुर्घटनाओं पर काबू पा लेने का रटा-रटाया संकल्प दोहराते देखे गए।
विचित्र है कि एक तरफ तो तेज रफ्तार गाड़ियां चलाने का खाका खींचा जाता है, वंदे भारत जैसी गाड़ियों की संख्या बढ़ाई जा रही है, स्टेशनों का रखरखाव निजी हाथों में सौंप कर यात्री सुविधाओं में बेहतरी का श्रेय लूटने की कोशिश की जाती है और दूसरी तरफ मुसाफिरों की सुरक्षा को लेकर जो उपाय किए जाने चाहिए, उसमें शिथिलता नजर आती है। जब भी कोई रेल हादसा होता है तो कवच नामक उपकरण की बात उठती है। सरकार ने खूब बढ़-चढ़ कर दावा किया था कि कवच लग जाने के बाद गाड़ियों के टकराने और दुर्घटनाग्रस्त होने से निजात मिलेगी। मगर अभी तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय नतीजा सामने नहीं आ सका है।
सरकार ने माना कवच लगाने का काम चल रहा धीरे
सरकार खुद मानती है कि कवच लगाने का काम धीमी गति से चल रहा है, उसे तेज किया जाएगा। आंकड़ों में रेल पटरियों के विस्तार, पुलों की मरम्मत और गाड़ियों की संख्या आदि बढ़ाने की मोहक सूचनाएं प्रसारित की जाती हैं, मगर हकीकत यही है कि रेलगाड़ी का सफर भरोसेमंद नहीं रह गया है। आखिर क्या वजह है कि एक ही पटरी पर दौड़ती हुई दो गाड़ियां परस्पर भिड़ जाती हैं या उसी पटरी पर खड़ी गाड़ी से आकर दूसरी गाड़ी टकरा जाती है। चेन्नई की घटना में बताया जा रहा है कि बागमती एक्सप्रेस लूप लाइन पर खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई।
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आज जब रेल यातायात का संचालन कंप्यूटरीकृत हो गया है, पटरियां बदलने तक में कंप्यूटर प्रणाली का सहारा लिया जाने लगा है, तब कैसे लूप लाइन पर आकर कोई तेज रफ्तार गाड़ी वहां खड़ी गाड़ी से टकरा जाती है। तमाम हादसों में सिगनल प्रणाली में गड़बड़ी, पटरी बदलने में लापरवाही आदि कारण प्रमुख पाए गए हैं। गाड़ियों में टक्कररोधी उपकरण लग जाने भर से इन खामियों के ठीक हो जाने का दावा नहीं किया जा सकता।
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क्या वजह है कि जबसे तकनीकी संसाधनों का उपयोग बढ़ा है, हादसे भी बढ़े हैं, जबकि तकनीकी संसाधन रेल यातायात को सुगम और सफर को सुरक्षित बनाने के इरादे से इस्तेमाल किए जाते हैं। अगर रेल मंत्रालय सचमुच रेलवे को सुगम, सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने को लेकर गंभीर होता, तो इस तरह मुसाफिरों की जान जोखिम में डाल कर गाड़ियां नहीं चलाई जातीं।