लगभग पांच महीने पहले जब कोरोना के संक्रमण के खतरे को देखते हुए देश भर में पूर्णबंदी लागू हुई, तभी से सभी शिक्षण संस्थान भी बंद हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से चरणबद्ध तरीके से पूर्णबंदी में राहत दी जा रही है और धीरे-धीरे बाजार सहित कई क्षेत्र खुल रहे हैं, लेकिन अभी भी स्कूल-कॉलेज सहित अन्य वैसी जगहों को खोले जाने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है, जहां बच्चों या फिर लोगों का जमावड़ा हो।

खासतौर पर स्कूल और कॉलेज परिसरों में सामान्य दिनों में विद्यार्थियों के बीच जिस तरह पढ़ने-लिखने से लेकर खेलने-कूदने तक के मामले में एक दूसरे के साथ घुलना-मिलना होता है, उसमें यह कहना मुश्किल है कि अभी वहां वे संक्रमण से कितने सुरक्षित रह सकेंगे। स्कूली बच्चों में संक्रमण को लेकर वैसे भी ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि बचाव के नियमों को लेकर उनके बीच कई बार जाने-अनजाने असावधानी हो जा सकती है। शायद यही वजह है कि सरकार शिक्षण संस्थानों को फिर से खोलने को लेकर किसी हड़बड़ी में नहीं है। जाहिर है, सरकार कोरोना के संक्रमण से बच्चों के बचाव को प्राथमिक मान कर चल रही है और इस मामले में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती है।

दरअसल, इतने लंबे समय से बंद पड़े स्कूल और सीमित स्तर पर चल रहे आॅनलाइन शिक्षण के बीच यह सवाल लोगों के बीच चर्चा का विषय बन रहा है कि आखिर यह सब कब तक चलेगा। इसमें कोई संदेह नहीं महामारी के चलते शिक्षा क्षेत्र को बेहद नुकसान पहुंचा है और समूची पढ़ाई-लिखाई की प्रक्रिया बुरी तरह बाधित हुई है। आम लोगों के बीच इस मसले पर काफी ऊहापोह है कि स्कूलों को अभी खोलना कितना सुरक्षित होगा। लेकिन सोमवार को आई खबरों में कहा गया है कि स्कूलों को फिर से खोलने के लिए फिलहाल कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है या इस मसले पर कोई स्पष्टता नहीं है। इस संबंध में कोई फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि कोविड-19 महामारी का संक्रमण किस स्थिति में है।

इसके बावजूद शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने सोमवार को एक संसदीय स्थायी समिति को बताया कि कॉलेजों और उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए वर्तमान शैक्षणिक वर्ष शून्य वर्ष यानी ‘जीरो ईयर’ नहीं होगा और सत्र के आखिर में परीक्षाएं आयोजित हो सकती हैं। इससे यह संकेत भी मिलता है कि सरकार अपने दायरे में शिक्षण संस्थानों को खोलने या फिर अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है, लेकिन महामारी के खतरे से निपटना उसकी प्राथमिक चिंता है।

निश्चित रूप से स्कूल-कॉलेजों का बंद होने की अवधि का लंबा खिंचना किसी के लिए भी चिंता का विषय होगा। लेकिन कोरोना के संक्रमण की स्थिति आज भी जिस हालत में है, संक्रमितों की तादाद चिंताजनक है, उसमें इस बीमारी से बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई जोखिम नहीं लिया जाना चाहिए। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि महामारी से बचाव के दौर में नियमित स्कूलों और कक्षाओं का विकल्प जिस तरह आनलाइन शिक्षण में खोजा जा रहा है, वह संसाधनों और सुविधाओं के मद्देनजर देश की एक बड़ी आबादी के लिए शायद प्रतिकूल साबित हो। इसलिए संक्रमण की तीव्रता पर काबू पाने और बचाव के पर्याप्त इंतजामों के सुनिश्चित होने पर ही स्कूल-कॉलेजों को खोलने पर विचार होना चाहिए।

हालांकि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ ने स्कूल खोलने का इरादा जाहिर किया है, लेकिन देश के सभी राज्यों में संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। अभिभावकों के बीच भी अभी महामारी से बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई आश्वस्ति का भाव पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में शैक्षणिक संस्थान को खोलने को लेकर सावधानी बरतना स्वाभाविक है।