विशाखापट्टनम के एक कारखाने में जहरीली गैस के रिसाव ने एक बार फिर भोपाल गैस त्रासदी की याद ताजा कर दी है। इस हादसे में अब तक दर्जन भर से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और करीब एक हजार गंभीर हालत में हैं। गौरतलब है कि बुधवार देर रात को कारखाने में गैस का रिसाव शुरू हो गया। उस वक्त जो लोग कारखाने में तैनात थे, उन पर तो असर हुआ ही, आसपास के करीब तीन किलोमीटर क्षेत्र तक उसका प्रभाव देखा गया। उस वक्त लोग घरों में सो रहे थे। गैस सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंची और लोग बेहोश हो गए। बहुत सारे लोगों को सांस लेने में तकलीफ, अंखों में जलन की शिकायत है। हालांकि प्रशासन ने सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा दिया है और बहुत सारे लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, पर इस गैस का प्रभाव कितना घातक साबित होगा, अभी कहना मुश्किल है। भोपाल गैस त्रासदी के बाद इसे अब तक का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा कहा जा सकता है।

ऐसे औद्योगिक हादसों की वजहें छिपी नहीं हैं। यों प्रशासन ने कारखाना प्रबंधन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है, प्रबंधन अपने पक्ष में मामूली चूक, मानवीय भूल जैसी दलीलें देकर बचने का प्रयास भी करेगा। पर सवाल है कि औद्योगिक सुरक्षा मानकों के मामले में लापरवाही की प्रवृत्ति पर अंकुश क्यों नहीं लग पाता। जिन कारखानों में जहरीली गैसों का उपयोग या उत्पादन होता है, वहां सुरक्षा को लेकर अधिक मुस्तैदी की जरूरत होती है। भोपाल गैस त्रासदी के अनुभवों को देखते हुए इसके लिए सख्त निर्देश भी तय हुए। मगर कारखाना प्रबंधन अक्सर मामूली पैसा बचाने के लोभ में सुरक्षा इंतजामों को नजरअंदाज करते रहते हैं। विशाखापट्टनम के जिस कारखाने में गैस का रिसाव हुआ, वह अचानक घटी घटना नहीं हो सकती। ज्यादा संभावना यही है कि जहां से गैस का रिसाव हुआ वहां बहुत पहले से कोई पुर्जा कमजोर रहा होगा, चेतावनी देने वाला यंत्र काम नहीं कर रहा होगा और कारखाना प्रबंधन उसे नजरअंदाज करता रहा होगा। कारखानों में गैसों का रिसाव पाइपों, नलकियों वगैरह के कमजोर पड़ कर फट जाने की वजह से होता है। जहां ऐसी खतरनाक गैसों का उपयोग या उत्पादन होता है, वहां रिसाव आदि की स्थिति में चेतावनी देने वाले स्वचालित यंत्र लगाने अनिवार्य हैं। फिर विशाखापट्टनम के कारखाने में गैस का बड़े पैमाने पर रिसाव हो गया और कैसे प्रबंधन को इसकी भनक तक नहीं लगी।

औद्योगिक इकाइयों में सुरक्षा इंतजामों के मामले में लापरवाही छिपी बात नहीं है। हादसों के बाद ऐसी इकाइयों की जवाबदेही को लेकर कड़े नियम-कायदे भी नहीं हैं। अनेक देशों में औद्योगिक हादसे की स्थिति में भारी जुर्माने और मुआवजे वगैरह का कानून है, जिसकी वजह से कारखाना प्रबंधन सुरक्षा इंतजामों को लेकर कभी लापरवाही बरतते नहीं देखे जाते। पर हमारे यहां, चाहे वह देशी कंपनी हो या विदेशी, औद्योगिक हादसों को लेकर उनके प्रति बहुत उदारवादी रवैया अपनाया जाता है। इसलिए वे सुरक्षा उपायों को लेकर प्राय: उदासीन देखी जाती हैं और उसी का नतीजा है कि बड़े हादसे हो जाते हैं। अक्सर कहीं बड़ी संख्या में मजदूर मारे जाते हैं, कहीं आसपास के लोग भी उनकी चपेट में आ जाते हैं। अनेक मामलों में लोगों की सेहत पर ऐसे हादसों के दुष्प्रभाव लंबे समय तक देखे जाते हैं। आखिर लोगों की जान की कीमत पर ऐसी लापरवाहियों और मनमानियों को कब तक अनदेखा किया जाता रहेगा।