इस समय एक बड़ा सवाल यह उठाया जा रहा है कि कोरोना संक्रमण की जांच के मामले में सरकार बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है और यही वजह है कि संक्रमितों की पहचान और इलाज को लेकर अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। ऐसा शायद इसलिए भी है कि इससे संबंधित जांच और संक्रमितों के इलाज के लिए सुविधाओं का दायरा अभी सीमित है। अगर किसी व्यक्ति को संदिग्ध पाया जाता है तो पर्याप्त जांच केंद्र न होने की वजह से उसके नतीजे आने में देरी लगती है। यह किसी से छिपा नहीं है कि आज देश में कोरोना के मामलों की तादाद काफी चिंताजनक स्तर तक बढ़ चुकी है और इसे रोक पाना मुश्किल बना हुआ है। कुछ समय पहले कोरोना जांच की सुविधा का विस्तार निजी अस्पतालों तक भी करने की बात कही गई थी, लेकिन तब जांच की कीमत को लेकर कई सवाल उठे थे। यह मामला भी अदालत के सामने रखा गया था। लेकिन इस मसले पर एक राय नहीं बन सकी थी और निजी अस्पतालों में जांच और इलाज के लिए ऊंची रकम वसूले जाने के आरोप सामने आते रहे।

अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह देश भर में उन निजी अस्पतालों को चिह्नित करे, जहां कोविड-19 संक्रमितों का इलाज मुफ्त या न्यूनतम दर पर किया जा सकता है। अदालत ने साफ लहजे में कहा कि ऐसे तमाम निजी अस्पताल हैं, जिन्हें सरकार की तरफ से मुफ्त या मामूली दरों पर सार्वजनिक जमीन दी गई है। दरअसल, जनकल्याण से संबंधित सेवा होने के नाते सरकार की ओर से अस्पतालों के लिए बेहद मामूली दर पर जमीन इसीलिए दी जाती है कि वहां वैसे मरीजों को भी मुफ्त या नाममात्र के खर्च पर इलाज मिल सकेगा, जिनके पास पर्याप्त पैसे नहीं होते। मौजूदा संदर्भ में देखें तो कोरोना की जद में वैसे लोग भी आ रहे हैं जो पहले ही अभाव झेल रहे हैं और उन्हें इलाज की तत्काल आवश्यकता है। लेकिन सरकारी सुविधाओं की सीमा के बीच निजी अस्पतालों का रुख वे इसलिए नहीं कर पाते कि वहां का खर्च वहन कर पाना उनके वश में नहीं होता। इस लिहाज से देखें तो निजी अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों का इलाज मुफ्त में करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने समय पर एक जरूरी दखल दिया है।

यों चिकित्सा एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे जनकल्याण और सेवा का मामला माना जाता है। लेकिन हमारे देश में यह शिकायत आम है कि अस्पताल खोलने के नाम पर निजी कंपनियां या समूह सरकार से बेहद सस्ते दाम या मामूली दरों पर सार्वजनिक जमीन ले लेते हैं, लेकिन बाद में जब वहां लोग इलाज कराने जाते हैं तो उनसे बेलगाम पैसे वसूले जाते हैं। विडंबना यह है कि वैश्विक महामारी घोषित होने और समूचे देश की लगभग सभी स्वास्थ्य सेवाएं इसी बीमारी की रोकथाम में केंद्रित होने के बावजूद निजी अस्पतालों ने शायद इसे कमाई के एक मौके के तौर पर ही देखा है। मौजूदा संकट के संदर्भ में देखें तो एक व्यापक आपदा के दौर में यह निजी अस्पतालों का असहयोगात्मक रवैया है। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना संक्रमण से पार पाने में निजी अस्पताल पहलकदमी करेंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो अदालत के निर्देश के मुताबिक कोविड-19 के इलाज की लागत के नियमन को लेकर सरकार को जरूरी कदम उठाने चाहिए।