माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी लागू करते समय करों की चोरी रोकने को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए थे। जीएसटी पंजीकरण का ढांचा इस तरह तैयार किया गया कि कोई भी व्यापारी करों की चोरी कर ही न पाए। मगर जीएसटी को लागू हुए छह साल हो जाने के बाद आकलन है कि इस दौरान जीएसटी में करीब तीन लाख करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की जा चुकी है।
इसमें से एक लाख करोड़ रुपए की धोखाधड़ी अकेले पिछले वित्तवर्ष में की गई। यानी जीएसटी चोरी की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती गई है। हालांकि जीएसटी संग्रह पर लगातार पैनी नजर रखी जाती है और विभिन्न राज्यों से धोखाधड़ी करने वालों को गिरफ्तार भी किया जाता रहा है। मगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग पाई है।
जीएसटी संग्रह प्रणाली में कृत्रिम मेधा के उपयोग की सलाह
इसके मद्देनजर अब जीएसटी संग्रह प्रणाली में कृत्रिम मेधा के उपयोग की सलाह दी जा रही है, जिसके जरिए जीएसटी दावों की तुलना करके धोखाधड़ी को आसानी से पकड़ा जा सके। हालांकि जीएसटी संग्रह को लेकर मुस्तैदी बरते जाने का नतीजा है कि इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। अब जीएसटी संग्रह करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए मासिक तक पहुंच गया है। अगर इस दिशा में और मुस्तैदी बरती जाए तो जीएसटी संग्रह और बढ़ सकता है।
दरअसल, जीएसटी लागू करने के पीछे मकसद था कि इससे व्यापारियों को अलग-अलग करों के भुगतान से मुक्ति मिलेगी। इस तरह उत्पादन लागत कम होगी और उसका सीधा फायदा अंतिम उपभोक्ता को मिलेगा। कई देशों में वस्तुओं पर लगने वाले करों का यही ढांचा लागू है। हालांकि शुरुआती वर्षों में जीएसटी निर्धारण को लेकर कुछ हड़बड़ी देखी गई थी, जिसके चलते जीएसटी परिषद को बार-बार वस्तुओं पर करों के निर्धारण को लेकर बैठकें बुलानी पड़ी थीं।
शुरू में सैद्धांतिक संकल्प लिया गया था कि जीएसटी की दर किसी भी वस्तु पर अठारह फीसद से अधिक नहीं रखी जएगी और आगे के वर्षों में इन दरों में कटौती की जाती रहेगी। मगर शुरुआती वर्षों में कई वस्तुओं पर यह पच्चीस फीसद तक रखी गई थी। बाद में उन्हें घटा कर कम किया गया। मगर अब भी अठारह फीसद की दर के लक्ष्य का पालन नहीं किया जा पा रहा है। इस तरह बहुत सारे व्यापारियों के लिए जीएसटी की दरें अधिक जान पड़ती हैं। इसलिए भी वे धोखाधड़ी का रास्ता अपनाते देखे जाते हैं।
सबसे बड़ी दिक्कत छोटे व्यापारियों के सामने पैदा हुई, क्योंकि उन्हें जीएसटी भुगतान के तौर-तरीके नहीं पता हैं। इसके लिए उन्हें चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद लेनी पड़ती है। यह उनके लिए हर महीने का अतिरिक्त खर्च है। ऐसे में बहुत सारे व्यापारियों ने कर चोरी के लिए फर्जी जीएसटी खाता खुलवाने का तरीका निकाल लिया। फर्जी कंपनियां खोल और फर्जी आधार कार्ड बनवा कर उन्होंने फर्जी जीएसटी पंजीकरण कराना शुरू किया। इस तरह खरीद-बिक्री के आंकड़ों में हेराफेरी शुरू हो गई।
हालांकि जीएसटी में करों का भुगतान अंतिम उपभोक्ता और अंतिम विक्रेता से तय होता है, इसलिए विभिन्न चरणों से वस्तुओं के गुजरने को मिलान करने पर धोखाधड़ी पकड़ी जा सकती है। मगर करों की चोरी की शृंखला चूंकि पहले चरण से ही शुरू हो जाती है, इसलिए उसके आखिरी पायदान पर पहुंचने तक पहचान कर पाना मुश्किल होता है। जीएसटी भुगतान अब भी छोटे व्यापारियों के लिए एक झंझट भरा काम है। इसलिए इस पर नजर रखने के लिए न केवल तंत्र को पुख्ता करने, बल्कि इस प्रक्रिया को आसान बनाने की भी जरूरत है।