किसी भी हादसे का सबसे अनिवार्य सबक यह होना चाहिए कि ऐसे इंतजाम किए जाएं, ताकि भविष्य में फिर उस तरह के हालात से बचा जा सके। मगर ऐसा लगता है कि सरकारों ने एक तरह से यह रिवायत बना ली है कि किसी हादसे में जब तक कई लोगों की जान न चली जाए और वह मुद्दा तूल न पकड़ ले, तब तक उसकी नींद नहीं खुलेगी। उत्तर प्रदेश के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज में शुक्रवार की रात को जैसा हादसा हुआ, अगर वह सरकार के लिए सिर्फ पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने और जांच या कार्रवाई तक सीमित रहने का मामला बन कर रह जाता है, तो यह एक तरह से अगले हादसे का इंतजार करने से ज्यादा नहीं होगा।

गौरतलब है कि अस्पताल के नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष यानी एनआइसीयू में शुक्रवार की रात भीषण आग लग गई, जिसमें दस नवजात की जल कर मौत हो गई। एनआइसीयू वार्ड में जिस वक्त आग लगी, तब उसमें चौवन बच्चे भर्ती थे। मगर अस्पताल की आपात व्यवस्था लाचार पड़ी रही और कुछ अन्य लोगों ने अपनी जान पर जोखिम उठा कर कई बच्चों को बचाया। अगर इन कुछ लोगों ने हिम्मत नहीं की होती तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बच्चे जिंदा बच पाते।

सरकार करा रही त्रि-स्तरीय जांच

आखिर ऐसी स्थिति कैसे बनी हुई थी कि अस्पताल के सबसे संवेदनशील कक्ष में भी इतने बड़े हादसे को रोका नहीं जा सका। खबरों के मुताबिक, झांसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि यह घटना अस्पताल के आक्सीजन कंसंट्रेटर में आग लगने की वजह से हुई। साथ ही कारण के रूप में शार्ट सर्किट, अग्नि सुरक्षा के नियमों का धता बताने और आग बुझाने वाले यंत्र पुराने होने की खबरें भी आईं। अब रस्मी तौर पर इन सबकी त्रि-स्तरीय जांच कराने की सरकारी घोषणा कर दी गई है।

हाईकोर्ट के आदेश से हिमाचल सरकार को बड़ा झटका, अधिकारियों की नियुक्तियां रद्द

मृत नवजातों के परिजनों को पांच लाख रुपए और गंभीर घायलों को पचास हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी! लेकिन ऐसी तमाम घटनाएं गवाह हैं कि इस तरह की जांच के नतीजे क्या आते हैं, किसे जिम्मेदार ठहराया जाता है, किसके खिलाफ कार्रवाई होती है और उसके बाद ऐसे हादसों को पूरी तरह रोकने और बचाव के लिए क्या किया जाता है, यह जनता के सामने शायद ही कभी आ पाता है। मान लिया जाता है कि मुआवजा ऐसी लापरवाहियों का शिकार होकर किसी की मौत से उठे सवालों का जवाब है।

गोरखपुर में हुआ था बड़ा हादसा

ऐसा नहीं है कि इस तरह की यह कोई पहली घटना है। इससे पहले गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में सन 2017 में आक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने से तिरसठ बच्चों की जान चली गई थी। इसी वर्ष मई में दिल्ली में एक अस्पताल में आग लगने से सात नवजातों की मौत हो गई। जिन अस्पतालों में लोग अपना या अपने बच्चों का इलाज कराने या जान बचाने की आस लेकर पहुंचते हैं, वहां सिर्फ लापरवाही, बदइंतजामी और कुप्रबंधन की वजह से अगर ऐसे हादसों में लोगों को जान गंवानी पड़ती है, तो इसके लिए कौन जवाबदेह है?

शराब खरीदते समय दुकान पर उम्र की जांच, नियम की हो रही अनदेखी

आग लगने की सभी आशंकाओं को खत्म करने से लेकर बचाव के सभी इंतजाम करने की जिम्मेदारी किसकी है? केवल सब कुछ ठीक होने के दावे से ऐसी आपराधिक लापरवाहियों को ढका नहीं जा सकता। सवाल है कि ऐसे हादसे सरकार के लिए कब ऐसा सबक बनेंगे, जब वह इनसे बचाव या ऐसा न होने देने के लिए ठोस और मुकम्मल इंतजाम करेगी।