राष्ट्रों की ताकत इस बात से भी आंकी जाती है कि उनकी सामरिक हैसियत क्या है। खासकर उन देशों के लिए अपनी सेना को मजबूत बनाना ज्यादा जरूरी हो जाता है, जिनका पड़ोसी देशों से लगातार तनाव बना रहता है। भारत को इसीलिए अपनी सामरिक शक्ति लगातार मजबूत बनाए रखनी पड़ती है कि उसे चीन और पाकिस्तान से लगातार चुनौतियां मिलती रहती हैं। निस्संदेह पिछले कुछ वर्षों में भारत ने सैन्य साजो-सामान के मामले में अपने को सुदृढ़ किया है और पड़ोसी चीन को चुनौती देने के स्तर पर खड़ा हो सका है।

नए रक्षा सौदों को मंजूरी मिलने से सेना की जरूरतें होंगी पूरी

इसके लिए न केवल दूसरे देशों से उन्नत सामरिक संसाधनों की खरीद पर जोर दिया गया, बल्कि घरेलू विनिर्माण में भी सैन्य उपकरणों के उत्पादन पर बल दिया गया। इस कड़ी में पैंतालीस हजार करोड़ रुपए के नौ रक्षा सौदों को मिली नई मंजूरी से निस्संदेह सेना का मनोबल बढ़ेगा। इसमें सुखोई एमकेआइ लड़ाकू विमान और हवा से सतह पर मार करने वाली कम दूरी की मिसाइलों तथा नौसेना के लिए अगली पीढ़ी के टोही विमान और हल्के बख्तरबंद बहुद्देश्यीय वाहनों तथा तोपों की खरीद शामिल है। दरअसल, सेना को लंबे समय से शिकायत रही है कि बदलती जरूरतों के अनुसार उसके पास अत्याधुनिक सैन्य संसाधनों की कमी है। नए रक्षा सौदों को मंजूरी मिलने से वह शिकायत काफी हद तक दूर हो सकती है।

सुखोई जैसे विमानों के आने से वायुसेना की ताकत और बढ़ेगी

दरअसल, वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में तैनात ज्यादातर विमान पुराने पड़ चुके थे। उनकी जगह नए उन्नत विमानों की खरीद लंबे समय से टलती आ रही थी। रफाल की खरीद से कुछ हद तक वह कमी पूरी हुई। अभी और नए रफाल आने हैं। सुखोई जैसे विमानों के आने से वायुसेना की ताकत और बढ़ेगी। बदलती सामरिक स्थितियों में वायुसेना की भूमिका ज्यादा अहम होती गई है, इसलिए उसे अत्याधुनिक और उन्नत सामरिक संसाधनों से लैस करना ज्यादा जरूरी माना जाता है। इसी तरह नौसेना और थलसेना को भी अत्याधुनिक साजो-सामान से लैस किया जा रहा है। नए रक्षा सौदों की मंजूरी से तीनों सशस्त्र बलों की ताकत बढ़ेगी। पहले ही नौसेना को उन्नत पोत मिल चुका है, जो आपात स्थिति में समुद्र में वायुसेना को भी लड़ाकू विमान उतारने और उड़ान भरने में मददगार साबित होगा।

इस तरह हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ी है। नए सौदों के बाद टोही विमान सहित दूसरे उपकरण मिलने से वह और ताकतवर होगी। उत्साहजनक बात यह भी है कि दूसरे देशों से सामरिक साजो-सामान खरीदने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल भी इस दिशा में हो रहा है और कई उपलब्धियां हासिल हुई हैं।

मगर इन सबके बीच सरकार के लिए यह चिंता का विषय तो है कि भारत को अपना खर्च लगातार बढ़ाना पड़ रहा है। इस समय रक्षा बजट तीन लाख करोड़ रुपए से ऊपर है। हर साल बजट में रक्षा मद में कुछ बढ़ोतरी करनी पड़ती है। प्रधानमंत्री ने भी पहले कार्यकाल में यह चिंता प्रकट की थी कि सेना को अत्याधुनिक बनाने और उस पर खर्च कम करने की चुनौती बड़ी है। ऐसे में स्वदेशी तकनीक से बने उपकरणों, साजो-सामान को बढ़ावा और विदेशी हथियारों, उपकरणों की खरीद में कटौती के जरिए यह संतुलन साधने का प्रयास चल रहा है। अच्छी बात है कि इस क्रम में सेना का मनोबल भी बढ़ रहा है।