जनसत्ता 4 अक्तूबर, 2014: लंबे अंतराल के बाद गुरुवार को भारतीय हॉकी के लिए एक सुनहरा दिन आया। सरदार सिंह के नेतृत्व में देश की हॉकी टीम ने जब पाकिस्तानी टीम के खिलाफ पेनल्टी शूटआउट में दो के मुकाबले चार गोल से जीत दर्ज की तो यह इंचियोन में चल रहे सत्रहवें एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करने के साथ-साथ 2016 में रियो में होने वाले अगले ओलंपिक में हिस्सा लेने का टिकट मिलना भी था। एशियाई खेलों में इस बड़ी कामयाबी को अपने नाम करने के लिए भारत को सोलह वर्षों का इंतजार करना पड़ा। इससे पहले 1998 में बैंकाक में हुए एशियाई खेलों में उसने दक्षिण कोरिया को हरा कर स्वर्ण पदक हासिल किया था। लेकिन प्रतिद्वंद्वी के रूप में पाकिस्तान को हरा कर यही मुकाम पाने में भारत को अड़तालीस लग गए; 1966 में भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तानी टीम को ही हरा कर एशियाई खेलों का पहला स्वर्ण पदक जीता था। ताजा जीत दर्ज करने के लिए भी भारत का सफर आसान नहीं रहा। मैच शुरू होने के तीसरे मिनट में ही पाकिस्तान के मोहम्मद रिजवान ने एक शानदार गोल दाग दिया। भारतीय टीम को यह गोल बराबर करने में चौबीस मिनट लग गए। खेल के पहले क्वार्टर में पाकिस्तान की टीम मजबूत हालत में दिख रही थी और भारत को फॉरवर्ड लाइन में खेलने के बजाय बार-बार डिफेंस में जाना पड़ रहा था। भारत के पक्ष में कुछ अच्छे मौके बने, लेकिन वे गोल में तब्दील नहीं हो सके। हमले और बचाव के बीच फैसला आखिरकार पेनल्टी शूटआउट के जरिए हुआ।
निश्चित रूप से इस जीत की हकदार समूची भारतीय टीम है। मगर पेनल्टी शूटआउट के गोल में बदलने या उसे विफल करने में जिस तरह केवल गोल-रक्षक की काबिलियत कसौटी पर होती है, उसके लिए भारत के गोलकीपर श्रीजेश रविंद्रन की जितनी तारीफ की जाए, वह कम होगी। बहरहाल, भारतीय टीम के सभी खिलाड़ियों ने कड़ा अभ्यास किया था और इसका वाजिब पुरस्कार उन्हें मिला। लेकिन इस जीत से उन पर देश के लोगों की एक नई उम्मीद का भार भी आ गया है। अगर उनका यह जज्बा बना रहा तो वे अगले ओलंपिक में भी विजेता हो सकते हैं। इसका भरोसा इसलिए भी पैदा होता है कि स्वर्ण पदक लेने के बाद भारतीय टीम के कप्तान सरदार सिंह ने कहा कि इस जीत से ज्यादा संतुष्ट न होते हुए हमारी टीम को रियो ओलंपिक की तैयारी में जुटना होगा। गौरतलब है कि इंचियोन एशियाई खेलों में भारत ने स्वर्ण पदक जरूर जीता, लेकिन पाकिस्तान की मौजूदा टीम को पहले की तरह मजबूत नहीं माना जाता। दक्षिण कोरिया का भी स्तर पहले के मुकाबले गिरा है। जाहिर है, भारत की कामयाबी में इन टीमों की कमजोरी भी वजह बनी होगी। ओलंपिक में अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन, नीदरलैंड जैसी दुनिया की कई बेहतरीन टीमें होती हैं और वहां ज्यादा कड़े मुकबले होते हैं। रियो ओलंपिक में अभी दो साल बाकी हैं। उसमें भी जीत असंभव नहीं है, बशर्ते एशियाई खेलों में मिली इस जीत से पैदा हुए उत्साह को भारतीय टीम बनाए रखे और अपने कमजोर पहलुओं को दुरुस्त करने पर ध्यान दे। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता जुनून की हद तक है और इसके कारण दूसरे खेलों को अपेक्षित प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है। हॉकी में मिली कामयाबी यह याद दिलाती है कि भारत की खेल-प्रतिभा को हम क्रिकेट तक सीमित करके न देखें।
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