जबसे मोबाइल फोन संवाद से अधिक मनोरंजन का बड़ा उपकरण बनता गया और यूट्यूब जैसे मंचों पर हर किसी को अपनी रचनात्मक गतिविधियां परोसने की सुविधा प्राप्त हुई है, तबसे दुनिया भर में लाखों-लाख लोग बिना कुछ सोचे-समझे केवल शोहरत बटोरने या कुछ कमाई करने के लोभ में अनावश्यक सामग्री परोसने लगे हैं।

अश्लील मानी जाने या दूसरों को आहत करने वाल सामग्री बढ़ी

हालांकि यूट्यूब जैसे मंचों ने लोगों को बिना कोई शुल्क लिए गीत-संगीत, नृत्य-नाट्य आदि की प्रस्तुतियां परोसने की सुविधा उपलब्ध कराई है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि सामग्री को लेकर उनका कोई नियम-कायदा नहीं है। मगर बहुत सारे लोग उन नियम-कायदों का ध्यान नहीं रखते और अक्सर अश्लील मानी जाने या दूसरों को आहत करने, जानबूझ कर किसी को अपमानित करने वाली सामग्री डालते रहते हैं।

यूट्यूब ने दिसंबर के बाद में दुनिया भर में नब्बे लाख ऐसे वीडियो हटाए

हालांकि नियम-कायदों के उल्लंघन पर यूट्यूब का तंत्र खुद ऐसी सामग्री की छंटाई कर देता है, फिर भी लोग बाज नहीं आते। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूट्यूब ने दिसंबर के बाद के तीन महीनों में दुनिया भर में नब्बे लाख ऐसे वीडियो हटाए, जो उसके नियम-कायदों का उल्लंघन करते थे। उनमें सबसे अधिक भारत से परोसे गए वीडियो थे। ऐसे वीडियो की संख्या बाईस लाख से ऊपर थी।

दरअसल, मोबाइल के रूप में लोगों को एक ऐसा उपकरण हाथ लग गया है, जिसके जरिए बहुत आसानी से वीडियो बनाए और संपादित कर प्रसारित किए जा सकते हैं। अनेक अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि भारत बड़ी आबादी वाला देश होने और तेजी से इंटरनेट उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या के चलते मनोरंजन के नाम पर न केवल आपत्तिजनक और अविवेकपूर्ण सामग्री का उत्पादन बढ़ा है, बल्कि उनके उपभोक्ता भी बढ़ रहे हैं।

मगर कोई भी स्वस्थ समाज और जिम्मेदार तंत्र न तो आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार की इजाजत दे सकता है और न उसके निर्माण को प्रोत्साहन। मगर असल जिम्मेदारी तो यूट्यूब जैसे मंचों का उपयोग करने वाले उपभोक्ता की बनती है कि वे सामग्री निर्माण में विवेक का उपयोग करना सीखें। जब तक इस जिम्मेदारी का बोध पैदा नहीं होता, यूट्यूब जैसे मंच संचालित करने वालों से सतर्कता की अपेक्षा बनी रहेगी।