प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाला मामले में पूछताछ के लिए तीसरी बार नोटिस भेजा है। पहली बार वे इस तर्क पर हाजिर नहीं हुए कि ईडी ने अपने पत्र में उन्हें बुलाने का स्पष्ट कारण नहीं बताया था। तब उन्होंने पूछा था कि उन्हें किस हैसियत से बुलाया गया है, दिल्ली के मुख्यमंत्री या फिर आम आदमी पार्टी के संयोजक की हैसियत से। दूसरी बार के नोटिस पर भी उन्होंने लगभग इसी आशय का पत्र लिख कर स्पष्टीकरण मांगा और कहा था कि ईडी का नोटिस राजनीति से प्रेरित है।

हालांकि इस महीने मिले नोटिस में दिए गए समय पर वे अपने पहले से तय विपश्यना कार्यक्रम के लिए बाहर रहने वाले थे। अब शायद उनके पास ऐसा कोई तर्क न हो। अरविंद केजरीवाल लगातार बयान देते रहे हैं कि वे कट्टर ईमानदार व्यक्ति हैं और उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए स्वाभाविक ही पूछा जाता है कि अगर ऐसा है तो वे प्रवर्तन निदेशालय के सवालों से बचने का प्रयास क्यों कर रहे हैं। उन्हें निदेशालय के सामने अपना पक्ष रखना ही चाहिए, ताकि स्पष्ट हो सके कि वे वास्तव में ईमानदार हैं और शराब घोटाले में उनकी कोई भूमिका नहीं रही है।

मगर शराब घोटाले संबंधी जांच को पहले ही दिन से राजनीतिक रंग दे दिया गया। पहले तो आम आदमी पार्टी के नेता जबानी बयान देकर यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि नई आबकारी नीति पूरी तरह कानून सम्मत थी और उसके तहत किसी प्रकार का घोटाला हुआ ही नहीं। फिर उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार पर निशाना साधते रहे कि वह दिल्ली सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है और उसे काम नहीं करने देना चाहती। मगर शराब घोटाला संबंधी जांचों में मिले तथ्यों के आधार पर आम आदमी पार्टी के दो नेता सलाखों के पीछे जा चुके हैं।

मनीष सिसोदिया और संजय सिंह दोनों की जमानत अर्जियों पर सुनवाई करते हुए अदालत कह चुकी है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दोनों के इस घोटाले में शामिल होने के तथ्य मिले हैं। इसलिए अब दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी के पास यह तर्क नहीं रह गया है कि दिल्ली शराब घोटाला उपराज्यपाल की तरफ से रची गई साजिश जैसा बेबुनियादी मामला है। इस मामले को लेकर पहले ही काफी भ्रम फैलाया जा चुका है, अब इसकी हकीकत पर से पर्दा उठने का इंतजार सभी को है। यह तभी हो सकता है, जब इससे संबंधित जांच पूरी हो सकें।

जब भी किसी सत्ताधारी दल या उसके नेता पर किसी अनियमितता के आरोप लगते हैं, तो वे प्राय: उन्हें बेबुनियाद और सरकार को अस्थिर करने की साजिश के रूप में ही प्रचारित करने का प्रयास करते हैं। इस तरह इतनी बार राजनीतिक बयानबाजियां और सड़कों पर धरने-प्रदर्शन आदि आयोजित किए जाते हैं कि आम लोगों में भ्रम की स्थिति बन जाती है। जबकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत अपेक्षा की जाती है कि संबंधित नेता साक्ष्य के जरिए उन आरोपों को खारिज करें और जनता के सामने खुद को निर्दोष साबित कर सकें। आम आदमी पार्टी के नेता और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल अपनी ईमानदारी का दावा करते नहीं थकते। इसलिए अब उन्हें हकीकत सामने लाने में सहयोग करने से नहीं बचना चाहिए। यह भय दिखा कर लोगों को भ्रमित करने से भी बचाव का रास्ता नहीं मिल जाता कि ईडी उन्हें जेल में डालना चाहती है।