धनशोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को प्राप्त गिरफ्तारी संबंधी अधिकार को एक बार फिर अदालत ने व्याख्यायित किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि ईडी को गिरफ्तारी संबंधी असीमित अधिकार प्राप्त नहीं हैं। धनशोधन निवारण अधिनियम की धारा उन्नीस के तहत ईडी अपनी मर्जी से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकता है।

एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि प्रवर्तन निदेशालय अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, तो उसे पूरी तरह सुनिश्चित होना चाहिए कि वह व्यक्ति धनशोधन का दोषी है। वह उससे संबंधित तर्क दर्ज करेगा और फिर गिरफ्तार कर सकता है। अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ धन शोधन का आरोप है, तो ईडी उससे पूछताछ कर सकता है, मगर उस व्यक्ति को अग्रिम जमानत पाने का अधिकार है।

इस तरह एक बार फिर प्रवर्तन निदेशालय के कामकाज के तरीके को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी यही बात कही थी कि धनशोधन मामले के किसी आरोपी को मनमाने तरीके से गिरफ्तार करने का अधिकार प्रवर्तन निदेशालय को हासिल नहीं हैं। मगर उसके बाद भी निदेशालय के कामकाज के तरीके में कोई बदलाव नहीं देखा गया। दिल्ली उच्च न्यायालय की ताजा व्याख्या के बाद उसके रुख में कितना बदलाव आएगा, कहना मुश्किल है।

दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय के कामकाज को लेकर काफी समय से आपत्ति दर्ज कराई जा रही है। भ्रष्टाचार निवारण के नाम पर पिछले कुछ सालों में आयकर विभाग, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय के छापों में काफी तेजी आई है। विपक्षी दलों का आरोप रहा है कि ये तीनों एजंसियां सरकार के इशारे पर, बदले की भावना से काम कर रही हैं। इस मामले को लेकर कुछ विपक्षी दलों ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने गुहार भी लगाई थी कि इन एजंसियों की नाहक छापेमारी पर रोक लगाई जाए।

मगर अदालत ने कहा था कि धनशोधन का मामला चूंकि गंभीर और संवेदनशील होता है और उसका कोई सिरा आतंकवाद के वित्तपोषण से भी जुड़ा हो सकता है, इसलिए वह ईडी, सीबीआइ और आयकर विभाग को कार्रवाइयों से नहीं रोक सकता। मगर साथ में इन एजंसियों को यह भी निर्देश दिया था कि वे अपने अधिकार के दायरे में रह कर ही काम करें।

दरअसल, अनेक मामलों में यह भी देखा गया था कि जो काम सीबीआइ के दायरे में आता है, उसमें भी ईडी सिर्फ शक के आधार पर दखल दे देता है।
कायदे से धनशोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय को किसी भी व्यक्ति के खिलाफ तब तक गिरफ्तारी का कदम नहीं उठाना चाहिए, जब तक कि उसका दोष सिद्ध न हो जाए। मगर ऐसे कई उदाहरण हैं, जब उसने लोगों को सलाखों के पीछे भेज दिया।

धनशोधन निस्संदेह गंभीर समस्या है और यह छिपी बात नहीं है कि राजनीतिक संरक्षण में भ्रष्टाचार से जमा किया हुआ बहुत सारा पैसा सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जाता है। निश्चित रूप से इस पर अंकुश लगना चाहिए। मगर इसका तरीका पारदर्शी और निष्पक्ष हो, तभी जांच एजंसियों की विश्वसनीयता कायम रह पाती है।

चुनिंदा लोगों को लक्ष्य बना कर अगर कार्रवाई की जाएगी, तो स्वाभाविक ही उस पर अंगुलिया उठेंगी। इसीलिए विपक्षी दल ऐसे अनेक नेताओं के नाम भी गिनाते रहे हैं, जिन पर धनशोधन के गंभीर आरोप हैं, मगर उनके सत्तापक्ष में होने की वजह से प्रवर्तन निदेशालय उनकी तरफ से आंखें फेरे रहता है।