Political Misuse of ED: प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की कार्रवाइयों को लेकर लंबे समय से अंगुलियां उठती रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय भी कुछ मौकों पर उसके अधिकारियों को फटकार लगा चुका है कि वे धनशोधन के मामलों में गिरफ्तारियां तो खूब करते हैं, पर उनमें दोषसिद्धि की दर बहुत कम है। इससे उनकी कार्रवाई पर संदेह होता है। हालांकि अतिरिक्त महाधिवक्ता एसवी राजू ने अनेक मौकों पर अदालतों में ईडी का बचाव किया है, मगर उन्होंने भी खुद प्रवर्तन निदेशालय के स्थापना दिवस के मौके पर उसके अधिकारियों को नसीहत दी कि धनशोधन के मामलों में गिरफ्तारियों में संयम बरतें। शुरुआती चरण में ही गिरफ्तारी न करें। गंभीरता से जांच करने के बाद ही गिरफ्तारी का विचार करें और उसका आधार प्रस्तुत करें, नहीं तो अदालतों में उन्हें बेहतर नतीजे नहीं मिल पाएंगे।
अतिरिक्त महाधिवक्ता की इस नसीहत की वजह समझी जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों में ईडी ने धनशोधन से जुड़े मामलों में बहुत तेजी से कार्रवाइयां की हैं। थोड़े-थोड़े अंतराल पर उसकी छापेमारी चलती रहती है। यही वजह है कि करीब नौ वर्षों में उसने सवा पांच हजार से अधिक मामले दर्ज कर लिए। उनमें से ज्यादातर मामलों में गिरफ्तारियां भी हुईं। मगर दोषसिद्धि केवल चालीस मामलों में हो पाई है।
यह भी छिपी बात नहीं है कि जांच एजंसियों की कार्रवाइयों के पीछे केंद्र सरकार का दबाव रहा है, जिसके चलते ज्यादातर छापेमारियां और गिरफ्तारियां विपक्षी दलों से जुड़े लोगों के खिलाफ हुई हैं। इसलिए इन कार्रवाइयों को लेकर सत्तापक्ष लगातार विपक्ष के निशाने पर रहा है। मगर अतिरिक्त महाधिवक्ता की चिंता यह है कि उन मामलों में अदालत के सामने उन्हें ही दलील पेश करनी पड़ती है और अक्सर मामले कमजोर होने पर उन्हें अदालत की फटकार भी सुननी पड़ी है। इसलिए उन्होंने ईडी अधिकारियों को सीख दी है कि वे केवल मौखिक बयानों के आधार पर गिरफ्तारी का आधार न बनाएं।
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यही बात सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष एक मामले की सुनवाई के वक्त कही थी। मगर उस पर ईडी की दलील थी कि धनशोधन निवारण कानून की धारा पचास के तहत उसे मौखिक बयानों के आधार पर गिरफ्तारी का अधिकार प्राप्त है। मगर अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अदालत से बाहर उसी दलील के उलट पाठ पढ़ाया है कि कई बार लोग गिरफ्तारी के डर से कुछ बातें कबूल कर लेते हैं, पर बाद में अदालत के सामने अपने बयान से मुकर जाते हैं। इसलिए मौखिक बयानों को आधार न बनाएं।
दरअसल, भ्रष्टाचार रोकने के मकसद से धनशोधन निवारण कानून में बदलाव कर प्रवर्तन निदेशालय को काफी हद तक मुक्तहस्त बना दिया गया है। गिरफ्तारियों से संबंधित कानूनों को काफी लचीला बना दिया गया है। कई मामलों में ईडी को गिरफ्तारी के लिए इजाजत लेने या इत्तिला करने की जरूरत नहीं रह गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे व्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन माना था, मगर ईडी ने मौलिक अधिकारों के ऊपर अपने अधिकारों को ज्यादा तरजीह दी है। अतिरिक्त महाधिवक्ता के ताजा बयान से उम्मीद बनी है कि ईडी अपनी कार्रवाइयों में कुछ सतर्कता और कानूनी मूल्यों का ध्यान रखेगी, न कि केवल अपने अधिकारों का मनमानी उपयोग करेगी। मगर इसके साथ ही, यह भी देखने की बात होगी कि ईडी अपने को सरकारी दबाव से किस हद तक मुक्त कर पाती है।