यह विचित्र है कि दुनिया के धनी देश अपने यहां तो स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के सवाल पर सजग दिखते हैं, लेकिन गरीब देशों को उन्होंने कचरापट्टी का ठिकाना समझ लिया है। अगर कोई भी देश अपने यहां सामान्य गंदगी से लेकर ई-कचरे तक का ढेर नहीं लगने देता है, साफ-सफाई और पुनर्चक्रण का बेहतर इंतजाम करता है, तो यह स्वाभाविक है। मगर यह समझना मुश्किल है कि बहुत सारे अमीर देश अपने कचरे को ठिकाना लगाने के लिए विकासशील या गरीब देशों में ही क्यों भेज देते हैं।
इस संबंध में लंबे समय से सवाल उठाए जा रहे हैं और बताया गया है कि जिस मात्रा में विकसित देशों का कचरा विकासशील देशों में भेजा जा रहा है, उसके गंभीर खमियाजे सामने उठाने पड़ेंगे। संबंधित सरकारों को इसे रोकने के लिए हर स्तर पर तत्काल कदम उठाने चाहिए। मगर इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कई देशों की ओर से तीखा विरोध उभरने के बावजूद आज भी अमीर देशों ने अपना ई-कचरा विकासशील देशों में भेजा जाना जारी रखा है।
इस संबंध में पर्यावरण पर नजर रखने वाली संस्था बासेल एक्शन नेटवर्क यानी बीएएन ने बुधवार को जारी अपनी एक रपट में कहा है कि अमेरिका से लाखों टन खराब इलेक्ट्रानिक सामग्री दूसरे देशों में भेजी जा रही है, जिनमें से अधिकतर दक्षिण पूर्व एशिया के विकासशील देश हैं। ज्यादा चिंता की बात यह है कि जिन देशों में ये खतरनाक ई-कचरे भेजे जा रहे हैं, वे इसके सुरक्षित रूप से निस्तारण के लिए तैयार नहीं हैं। अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि ये घातक कचरे जिन देशों में भेजे जा रहे हैं, वहां की आबोहवा किस हद तक प्रभावित होगी और उसका आम लोगों के जीवन पर कितना घातक असर पड़ेगा।
बीएएन की रपट के मुताबिक, दो वर्ष तक हुई जांच में यह पाया गया कि कम से कम दस अमेरिकी कंपनियां इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रानिक सामान को एशिया और पश्चिम एशिया के देशों में भेजी जाती पाई गई हैं। इलेक्ट्रानिक कचरे में फोन, कंप्यूटर जैसे खराब और फेंके गए उपकरण हैं, जिनमें सीसा, कैडमियम और मरकरी जैसी कीमती सामग्री से लेकर विषाक्त धातु भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि बेसल समझौते के तहत केवल उसी तरह के कचरे को एक से दूसरे देश ले जाने की इजाजत है, जो पुनर्चक्रित होने, दोबारा इस्तेमाल में आने के साथ-साथ जहरीला और पर्यावरण के लिए हानिकारक न हो। यह जगजाहिर है कि इलेक्ट्रानिक सामान की दुनिया में कितनी तेजी से नए यंत्र सामने आ रहे हैं। किसी यंत्र का नया संस्करण के आने के बाद कुछ समय के भीतर ही बड़ी तादाद में पुराने यंत्र कचरे में तब्दील हो जाते हैं। यही वजह है कि वैश्विक पैमाने पर पुनर्चक्रण के मुकाबले ई-कचरे में पांच गुना तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
जिन देशों में यह कचरा भेजा जाता है, वहां के जल, भूमि और वायु पर इसका गहरा और विपरीत असर पड़ता है और पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित होता है। इसके बाद उससे होने वाले प्रदूषण के दायरे में जो भी आबादी आती है, उसके स्वास्थ्य पर बहुस्तरीय जोखिम पैदा होते हैं। सवाल है कि संसाधनों और सुविधाओं के उपभोग के समांतर ही अनिवार्य रूप से पुनर्चक्रण की व्यवस्था करने के बजाय अमीर और विकसित देशों ने गरीब और विकासशील देशों को अपने खतरनाक ई-कचरे का ठिकाना क्यों बना लिया है। अगर समय रहते इस समस्या का ठोस हल नहीं निकाला गया, तो इस ‘छिपी हुई सुनामी’ के बेहद खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं।
