इजराइल और ईरान के बीच युद्ध विराम पर सहमति की खबर निश्चित रूप से अच्छी बात है। युद्ध को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस युद्ध विराम की सूचना पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी। उनका दावा है कि उन्हीं के समझाने पर दोनों देश जंग की राह छोड़ने पर तैयार हुए हैं। पिछले बारह दिनों से दोनों देश एक-दूसरे पर विनाशकारी हमले कर रहे थे।

हालांकि अमेरिका शुरू से कहता रहा कि इस युद्ध को रोका जाना चाहिए। मगर उसका रुख एकतरफा ही था। वह स्पष्ट रूप से इजराइल के साथ खड़ा नजर आ रहा था। इजराइल को उसका समर्थन पिछले रविवार को तब पूरी तरह स्पष्ट हो गया, जब उसके बंकरभेदी विमानों ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर भीषण बम बरसा दिए। उस समय माना जाने लगा कि यह जंग लंबी चलेगी। युद्ध विराम की सूचना ने दुनिया को सुखद आश्चर्य से भर दिया। मगर इसके साथ ही युद्ध विराम के उल्लंघन से एक बार फिर चिंता पैदा हुई है।

कयास लगाए जा रहे थे कि इजराइल अब थक चुका है

हालांकि ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि इजराइल अब थक चुका है और ईरान के हमलों को नाकाम करने में विफल हो रहा है, इसलिए वह कदम पीछे खींचना चाहता है। फिर, अमेरिका को भी लग रहा था कि अगर वह इराक की तरह ईरान में भी फंस गया, तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

युद्ध शुरू करना तो आसान होता है, पर उसे समाप्त करना अपने हाथ में नहीं होता। फिर, किसी भी युद्ध के लंबे समय तक चलते रहने का असर न केवल संबंधित देशों की अर्थव्यवस्था पर, बल्कि दुनिया के बहुत सारे देशों पर पड़ता है। ऐसे में, इस युद्ध विराम की घोषणा हर तरह से सराहनीय कही जा सकती है। इस युद्ध में कौन सही था, कौन गलत, इसका विश्लेषण तो बहुत हो चुका, इतिहास में भी होता रहेगा, पर अभी इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि यह विराम स्थायी रूप कैसे ले।

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विडंबना यह है कि ट्रंप के युद्ध विराम की खबर देने के बाद भी ईरान और इजराइल ने एक-दूसरे के ठिकानों पर बम फेंके और अभी वे एक-दूसरे को संघर्ष विराम के उल्लंघन का दोषी ठहराने में लगे हुए हैं। इससे यही लगता है कि दोनों के भीतर टीस अभी बनी हुई है। इसे भी समाप्त होना चाहिए। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप सचमुच शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो ऐसा वातावरण बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर अधिक है।

पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि युद्ध में नियम-कायदों और सारी नैतिकता को ताक पर रख दिया जा रहा है। इजराइल इतने समय से फिलिस्तीन में जिस तरह बम बरसा रहा है, उसमें निरपराध स्त्रियों, बच्चों तक की चिंता नहीं की गई, अस्पतालों में बीमार और घायलों की परवाह किए बिना बम गिराए गए, वह युद्ध अपराध की ही श्रेणी में आता है। फिर ईरान के विरुद्ध परमाणु हथियार बनाने के सबूत के बगैर उसने हमला कर दिया। परमाणु विकिरण की परवाह किए बिना अमेरिका ने भी ईरान के परमाणु ठिकानों पर बम गिरा दिए।

इसी तरह दुनिया के करीब उनसठ देश किसी न किसी रूप में संघर्षरत हैं। उनमें केवल अपनी ताकत दिखाने की कोशिशें अधिक देखी जा रही हैं। पर, ऐसी स्थितियों को रोकने के मकसद से गठित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अब जैसे अप्रासंगिक हो गई है। इसके चलते दुनिया भर में किसी न किसी रूप में प्रभाव पड़ रहा है। अमेरिका महाबली है और अब उस पर यह जिम्मेदारी सबसे अधिक है कि युद्ध की स्थितियों को टालने और रोकने के व्यावहारिक उपाय तलाश करे।