बदलते रहन-सहन और खानपान से बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य चुनौतियों के प्रति लगातार आगाह किया जाता रहा है। विडंबना यह है कि इंसान कई बार खतरों को सामने देखते हुए भी अपनी आंख, नाक, कान बंद कर लेता है, यानी चेतावनियों की अनदेखी करता है। इसी प्रवृत्ति के समांतर परिवर्तित जीवनशैली के दुष्परिणामों में से एक, आघात को लेकर विज्ञान पत्रिका ‘लांसेट’ ने जो ताजा अध्ययन जारी किया है, उसके आंकड़े चिंताजनक तस्वीर पेश कर रहे हैं।
शोध में अनुमान लगाया गया है कि अगर समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो सन 2050 तक दुनिया भर में आघात से मरने वाले लोगों की संख्या पचास फीसद बढ़कर हर वर्ष एक करोड़ तक पहुंच जाएगी। बीते तीन दशकों में दुनिया भर में आघात के मामले करीब दोगुने हो चुके हैं। चिंता की बात यह है कि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित निम्न और मध्यम आय वाले देश हैं।
ऐसा या तो इन क्षेत्रों में भूख, गरीबी, बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं के चलते उपजी स्वास्थ्य समस्याओं और चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी की वजह से हुआ या फिर कुछ क्षेत्रों में औद्योगीकरण के चलते मानव श्रम पर आए अत्यधिक दबाव के कारण।
इस बढ़ती समस्या की जड़ में वजहें जो भी रही हों, अगर संबंधित देशों का स्वास्थ्य तंत्र, वैश्विक एजंसियों और प्रभावित क्षेत्रों ने इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दशकों में इसका बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल सकता है। भारत इन्हीं क्षेत्रों में शामिल है जहां की स्थिति आज भी बहुत चिंताजनक है।
यहां यह समस्या कितनी आम हो गई है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति की जान आघात से जा रही है। एक आंकड़े के मुताबिक आघात के 68.6 फीसद और इससे मौत के 70.9 फीसद मामले भारत में सामने आते हैं। यह बीमारी अमूमन पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होती है, लेकिन भारत में बीस वर्ष तक के इकतीस फीसद युवा और बच्चे भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं। यहां मौत का दूसरा सबसे सामान्य कारण आघात के रूप में सामने आ रहा है। आखिर क्या वजह है कि कारण और स्थितियां जगजाहिर होने के बावजूद यह समस्या इतने जटिल रूप में गहराती जा रही है।
दरअसल, मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रानिक संसाधनों पर अधिक समय बिताना, बाहर का खाना विशेषकर ‘जंक फूड’ पर निर्भरता, देर रात सोना और सुबह देर से जागना, पारिवारिक अलगाव, एकाकीपन जैसी समस्याएं आज आम होती गई हैं। इन कारणों से तनाव, उच्च रक्तचाप, मोटापा, हृदय की बीमारियां लोगों को घेर रही हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ इन्हीं सब को आघात का प्रमुख कारण बताते हैं। यह एक ऐसी घातक बीमारी है, जो हमला तो अचानक करती है, लेकिन उसके लिए हम बहुत पहले से जमीन तैयार कर रहे होते हैं। सब जानते हैं बदलती जीवनशैली जान पर भारी पड़ रही है। इसके बावजूद सबक लेने को तैयार नहीं। प्रतिस्पर्धी दौर में सब एक-दूसरे से आगे निकलने की दौड़ में जुटे हैं, भले ही इसके परिणाम कितने ही घातक क्यों न हों।
चिंताजनक यह भी है कि देश में आघात के मरीजों का शीघ्र और बेहतर ढंग से इलाज करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और संसाधनों का भारी अभाव है। तीसरी दुनिया के अन्य देशों में तो स्थिति और भी खराब है। सभी सरकारों को समय रहते इस ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा आने वाला कल कितना मुश्किल होगा, कहा नहीं जा सकता।