शहरी नियोजन की चपेट में आकर बहुत सारे प्राकृतिक जलाशय पहले ही अपना अस्तित्व खो चुके हैं, अब बचेखुचे संरक्षित जलाशयों पर जलवायु परिवर्तन का प्रकोप पड़ना शुरू हो चुका है। केंद्रीय जल आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक देश के डेढ़ सौ प्रमुख जलाशयों का स्तर घट कर महज इक्कीस फीसद रह गया है। भीषण गर्मी का असर सबसे अधिक दक्षिण भारत के जलाशयों पर देखा गया है, जहां बयालीस जलाशय हैं और उनमें जल की मात्रा घट कर सोलह फीसद तक रह गई है। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के दस जलाशयों में उनकी कुल क्षमता का अट्ठाईस फीसद जल रह गया है।
यही हाल पूर्वोत्तर के तेईस जलाशयों का है, जिनमें उनकी कुल भंडारण क्षमता का करीब बीस फीसद पानी रह गया है। इसे लेकर जल आयोग की चिंता स्वाभाविक है। पहले ही बरसात कम होने की वजह से इन जलाशयों का पुनर्भरण संतोषजनक स्तर तक नहीं पहुंच पाया था, फिर पहाड़ों पर बर्फ कम गिरने के कारण पहाड़ी इलाकों के जलाशयों में पानी का स्तर लगातार घट रहा है।
प्राकृतिक जलाशय अनेक शहरों के लिए पेयजल उपलब्ध कराने का प्रमुख स्रोत हैं। मगर समुचित रखरखाव और उनके जलस्रोतों का संरक्षण न हो पाने की वजह से उनमें बरसात का पानी भी समुचित रूप में नहीं पहुंच पाता। जलाशयों में बरसात का पानी ऊंचे इलाकों से पहुंचता है, मगर जब वहां बस्तियां बस जाती हैं, तो उनका जलस्रोत बाधित होता है। बहुत सारे जलाशयों का जल स्तर इसलिए भी घट रहा है। दूसरी सबसे बड़ी वजह पिछले कुछ वर्षों से तापमान में लगातार वृद्धि और बरसात का असंतुलित होना भी है।
गर्मी की अवधि लंबी होने से पेयजल और दूसरे उपयोग के लिए पानी की खपत बढ़ रही है। ऐसे में जलाशयों का स्तर घटते जाने से उन पर निर्भर शहरों और बस्तियों में जलसंकट बढ़ने की आशंका गहराने लगी है। लंबे समय से सलाह दी जाती रही है कि प्राकृतिक जलाशयों के रखरखाव और उनके जलस्रोतों को अबाध बनाए रखने की योजनाएं बनानी होंगी। बरसात का पानी उन तक पहुंचता रहे और उनमें गाद वगैरह की सफाई होती रहे, तभी उनके पुनर्भरण की संभावना बनेगी।