अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने एक नए जोश के साथ अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत कर दी है। अपने शपथ ग्रहण अभिभाषण में उन्होंने भरोसा दिलाया कि अब अमेरिका स्वर्णकाल में वापसी करने जा रहा है। हालांकि वे चुनाव प्रचार के दौरान भी बार-बार दोहराते रहे कि सत्ता में आने के बाद वे ‘अमेरिका प्रथम’ की नीति पर काम करेंगे। सत्ता की कमान संभालते ही उन्होंने इस पर अमल भी शुरू कर दिया। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद उन्होंने घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर आपातकाल लगा दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका को अलग कर दिया।

पेरिस जलवायु समझौते को अमान्य कर दिया। ब्रिक्स देशों को चेताया है कि अगर उनमें से कोई भी अमेरिकी नीतियों के विरुद्ध चलने का प्रयास करेगा, तो उसे उसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। आव्रजन संबंधी नियम-कायदों को वे सख्त बनाना चाहते हैं। अमेरिका में निर्यात करने वाले कई देशों पर उन्होंने भारी शुल्क की घोषणा कर दी है और अन्य देशों पर भी वे ऐसा ही कदम उठाने वाले हैं। उन्होंने धड़ाधड़ प्रशासनिक फेर-बदल शुरू कर दिया है। इस तरह दुनिया के तमाम देशों की नजर इस बात पर टिकी है कि ट्रंप प्रशासन उनके साथ कैसा व्यवहार करता है।

डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में भी अमेरिका केंद्रित नीतियों के पक्षधर थे। उस दौरान उन्होंने वाणिज्य-व्यापार और आव्रजन संबंधी नीतियों को सख्त बनाने के प्रयास किए थे। हालांकि दबाव में आकर उन्हें एच-वन बी वीजा पर रोक संबंधी फैसले को वापस लेना पड़ा था। इस बार भी कार्यभार संभालने से पहले ही इस वीजा को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी, मगर एलन मस्क के दबाव में उन्होंने इसे ज्यादा तूल नहीं दिया।

नए नियम के अनुसार अमेरिका छोड़े लोगों को अपने देश लौटना पड़ेगा

हालांकि वे घोषणा कर चुके हैं कि आव्रजन और नागरिकता नियमों को सख्त बनाया जाएगा। जाहिर है, इससे बहुत सारे लोगों को अमेरिका छोड़ कर अपने देश लौटना पड़ेगा। इसकी आशंका वहां बसे भारतीय मूल के लोगों को अधिक सता रही है। हालांकि ट्रंप ने अभी तक भारत को लेकर कोई कठोर कदम उठाने की बात नहीं कही है।

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अब तक भारत के साथ अमेरिका के संबंध मधुर रहे हैं। वाणिज्य-व्यापार में संतुलन बना रहा है। कूटनीतिक संबंधों में वैसी तल्खी कभी नहीं देखी गई, जैसी चीन के साथ रहती है। मगर ट्रंप ने जिस आक्रामक ढंग से कामकाज शुरू किया है और जैसे फैसले करने को कहते आ रहे हैं, उसमें कुछ आशंकाएं स्वाभाविक हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन से खुद को किया अलग

छिपी बात नहीं है कि अमेरिका की प्रतिस्पर्धा चीन से है। ट्रंप बार-बार चीन का हवाला देते हुए वाणिज्य-व्यापार में असंतुलन को रेखांकित करते रहे हैं। उन्हें लगता है कि चीन ने अमेरिका से फायदा अधिक उठाया है, दिया बहुत कम है। इसलिए वे चीनी वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाने की बात कह चुके हैं। चीन का उल्लेख करते हुए ही उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन से खुद को अलग कर लिया।

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कोरोना महामारी के समय स्वास्थ्य संगठन के पक्षपातपूर्ण रवैये का वे लगातार जिक्र करते रहे हैं। इसी तरह पेरिस जलवायु समझौते को चीन की चाल बताते रहे हैं। मगर चीन के प्रति कोई भी सख्त कदम उठाने से पहले ट्रंप प्रशासन को एलन मस्क के हितों से टकराना पड़ेगा। मस्क का काफी बड़ा कारोबार चीन में है। पिछले कार्यकाल में ट्रंप के भारत के साथ रिश्ते गर्मजोशी भरे रहे, इस बार भी उसमें शायद कोई बदलाव न आए।