अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके यूक्रेनी समकक्ष वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच वाइट हाउस में हुई तीखी बहस से पूरी दुनिया हतप्रभ है। दोनों नेताओं के बीच कटु वार्तालाप का संदेश दूर तक गया है। दरअसल, वैश्विक कूटनीति में इस घटना को अप्रत्याशित माना जा रहा है। दो राष्ट्र प्रमुखों के बीच इस तरह की तल्खी और अनावश्यक बहस को दुखद ही कहा जाएगा। जेलेंस्की की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि वे बातचीत के दौरान अपने तर्क रखते हुए सहज रहे और उनका हौसला कायम रहा।

अपने दूसरे कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ‘अमेरिका प्रथम’ की नीति को आगे रखते हुए सहयोगी देशों के साथ जिस तरह का आक्रामक रवैया अख्तियार किए हुए हैं, वह हैरानी भरा है। जेलेंस्की से मुलाकात के दौरान पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और राजनय शिष्टाचार को दरकिनार किया गया। इससे दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़ेंगे और रूस-यूक्रेन के बीच युद्धविराम की संभावनाएं भी क्षीण हो सकती हैं। वहीं अब यूक्रेन के समर्थन में खड़े यूरोप और अमेरिका के बीच एक खाई पैदा होने का अंदेशा है।

युद्ध रोकने के लिए भारत समेत कई देश कूटनीतिक हल तलाशने में जुटे

जिस दौर में रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को खत्म करने की कोशिशें चल रही हैं और उसके लिए अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर रहे हैं, उसमें इस तरह की अप्रिय स्थितियां पैदा होना निराशाजनक है। इसे अमेरिका ने जहां अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है, तो यूक्रेन ने अपने स्वाभिमान से। रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में अगर अमेरिका स्वयं को मध्यस्थ मानता है, तो उसे यूक्रेन पर दबाव बनाने से पहले उसे भरोसे में लेना चाहिए था। मगर बातचीत में ट्रंप यह बताते दिखे कि अमेरिका ने युद्ध के दौरान यूक्रेन पर कितना खर्च किया है।

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सुरक्षा गारंटी दिए बिना वे यूक्रेन के रूस से समझौता कर लेने की जिद पर अड़े रहे। इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति जिस खनिज समझौते के लिए गए थे, वह भी अधूरा रह गया। युद्ध रोकने के लिए भारत समेत कई देश कूटनीतिक हल तलाशने में जुटे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि शांति की राह निकल आएगी।