राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ ही जिस तरह डोनाल्ड ट्रप ने आनन-फानन अनेक कड़े फैसले और एलान कर डाले, उससे स्वाभाविक ही दुनिया भर में तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे। सबसे कड़ा फैसला उन्होंने अमेरिका में जन्म के साथ ही हर बच्चे को स्वत: वहां की नागरिकता मिल जाने संबंधी कानून को रद्द करने का किया। इस पर तुरंत प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं। अब डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रभाव वाले वहां के बाईस राज्यों ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दे दी है।
भारतीय मूल के सांसदों ने भी इसका विरोध किया है। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन के अधीन काम करने वाली कई संस्थाओं ने इसे अदालत में चुनौती दी है। जाहिर है, ट्रंप प्रशासन के लिए इस फैसले पर आगे कदम बढ़ाना आसान नहीं रह गया है। जन्म के साथ नागरिकता का कानून अमेरिकी संविधान में वर्णित है, इसलिए उसे बदलने पर विरोध की आशंका पहले ही क्षण से जताई जाने लगी थी। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति को किसी कानून को लागू करने या बदलने को लेकर असीमित अधिकार प्राप्त हैं, पर वहां की कानून-व्यवस्था ऐसी है कि राष्ट्रपति भी उससे ऊपर नहीं हैं।
ट्रंप शुरू से अवैध घुसपैठ के खिलाफ
दरअसल, ट्रंप शुरू से अवैध घुसपैठ और आव्रजन संबंधी नियमों में लचीलेपन के खिलाफ रहे हैं। अपने पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने कहा था कि आव्रजन नियमों में कमजोरी का लाभ उठा कर बहुत सारे लोग दूसरे देशों से आ जाते हैं और वे अमेरिकी युवाओं का हक मारते और संसाधनों का उपभोग करते हैं। सीमाओं पर सख्त निगरानी न होने के कारण हर वर्ष लाखों लोग अवैध रूप से घुस आते हैं।
अमेरिका में ट्रंप ने लगाया आपातकाल, नए जोश के साथ पेरिस जलवायु समझौते को किया अमान्य
ट्रंप ऐसे हर विदेशी नागरिक को अमेरिका से बाहर निकालना चाहते हैं। इसलिए शपथ ग्रहण के साथ ही उन्होंने सीमाओं पर आपातकाल लगा दिया और वहां सेना भेजने का फरमान जारी कर दिया। ऐसा नहीं कि ट्रंप से पहले अवैध घुसपैठियों पर नजर नहीं रखी जाती थी या गलत तरीके से आए लोगों को वापस नहीं भेजा जाता था। मगर ट्रंप जिस तरह विदेशी नागरिकों का वहां से सफाया करना चाहते हैं, उसे किसी भी लोकतांत्रिक देश का कदम नहीं माना जा सकता।
अवैध घुसपैठ अमेरिका के सामने बड़ी समस्या
अवैध घुसपैठ निस्संदेह अमेरिका के सामने बड़ी समस्या है और उससे निपटने के लिए कड़े कदम उठाने का विरोध नहीं किया जा सकता। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि वैध रूप से वहां रह रहे लोगों को भी नाहक निशाने पर ले लिया जाए। इससे विदेशी नागरिकों की मुश्किलें तो बढ़ेंगी ही, अमेरिका को भी भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
शपथ ग्रहण से पहले जब ट्रंप ने घोषणा की थी कि वे एच वन-बी वीजा खत्म करेंगे, तब उनके करीबी एलन मस्क ने ही सबसे पहले उसका विरोध किया था। इसके पीछे वजह यही थी कि ऐसे फैसले से दूसरे देशों से तकनीकी विशेषज्ञों और कुशल लोगों को लाना कठिन हो जाएगा। अमेरिका बेशक दुनिया का संपन्न देश है, पर हकीकत यह भी है कि बहुत सारे तकनीकी मामलों में उसके पास कुशल और विशेषज्ञ नागरिक नहीं हैं।
जिस तरह भारी शुल्क थोपने से दूसरे देशों में अमेरिका का भी बाजार सिकुड़ जाएगा, उसी तरह विदेशी नागरिकों को वहां से निकाल बाहर करने या प्रवेश रोकने पर उसके औद्योगिक उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है। ट्रंप कुशल व्यवसायी हैं और इतने कड़े तथा व्यापक विरोध के बावजूद, वे नहीं चाहेंगे कि जन्मजात मिलने वाली नागरिकता के कानून पर विवाद लंबा खिंचे।