हर बजटीय प्रावधान के पक्ष और विपक्ष में तर्क होते ही हैं। अक्सर विपक्ष उसकी खामियों को लेकर हमलावर नजर आता है। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि इसे सामान्य सिद्धांत मान कर सरकार बजटीय पक्षपात या असंतुलित प्रावधानों को सही ठहरा सकती है। इस बार के बजट को लेकर विपक्ष शुरू से ही हमलावर है। बुधवार को संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले विपक्ष ने बाहर प्रदर्शन किया। चर्चा के दौरान दोनों सदनों में हंगामा होता रहा।

प्रश्नकाल में विपक्ष ने राज्यसभा से बहिर्गमन किया। विपक्ष की सबसे अधिक आपत्ति बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष आबंटन को लेकर है। उसका कहना है कि बाकी राज्यों के साथ भेदभाव किया गया है। इसलिए कि सरकार को गठबंधन कायम रखने के लिए जद (एकी) और तेदेपा को खुश रखना बहुत जरूरी है। इस पक्षपातपूर्ण आबंटन से नब्बे फीसद देश बजट में गायब है। मगर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इसके जवाब में कहा कि सभी राज्यों को कुछ न कुछ दिया गया है, उनका उल्लेख भले बजट में अलग से नहीं किया गया। हालांकि बजट में विशेष रूप से किसानों, महिलाओं और युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है, मगर उनके लिए भी बजटीय प्रावधान को विपक्ष संतोषजनक नहीं मान रहा।

राजग सरकार के दो कार्यकाल निर्विघ्न रहे, उनमें विपक्ष एक तरह से गायब था, इसलिए बजट पर अपेक्षित बहसें नहीं हो पाती थीं। मगर इस बार विपक्ष मजबूत स्थिति में है और सरकार उसकी आलोचना से बच नहीं सकती। अभी बजट पर चर्चा के दौरान और भी अनेक बातें रेखांकित होंगी। मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बजट पर गठबंधन के सहयोगी दलों का दबाव साफ नजर आता है। बिहार और आंध्र प्रदेश की जद (एक) और तेदेपा की राज्य सरकारें शुरू से विशेष दर्जे की मांग उठाती रही हैं।

कयास तो यहां तक लगाए जा रहे थे कि अगर उन्हें विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला तो दोनों दल केंद्र सरकार का साथ छोड़ सकते हैं। मगर केंद्र ने उन्हें विशेष राज्य का दर्जा देने से साफ मना कर दिया। फिर बजट में उन्हें भारी-भरकम विशेष आर्थिक पैकेज दिया गया। इन दोनों राज्यों को बांट कर जब दो नए राज्य झारखंड और तेलंगाना बने, तो केंद्र ने इन्हें विशेष दर्जा देने का आश्वासन दिया था, मगर वह पूरा नहीं हो सका। इस लिहाज से इनकी दावेदारी वाजिब थी, मगर इसका यह अर्थ नहीं कि बाकी राज्यों की वित्तीय स्थिति अच्छी है और वे अपने दम पर विकास कर सकते हैं।

केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह सभी राज्यों को समान रूप से तरक्की के अवसर उपलब्ध कराए। हर राज्य में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि की सुविधाएं सृजित करे। मगर अक्सर देखा गया है कि केंद्र की हर सरकार राज्यों के लिए वित्तीय आबंटन में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है। इसी के चलते अक्सर असंतोष और विरोध का स्वर उभरता है। केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की स्थितियां बनती देखी जाती हैं। ठीक है कि इस वक्त राजग के सामने केंद्र में स्थायित्व का संकट है, इसलिए वह अपने दो बड़े सहयोगी दलों की मांगों की अनदेखी नहीं कर सकता। मगर संतुलन की अपेक्षा तो उससे की ही जाती है। अगर कुछ राज्यों और वर्गों की वास्तविक जरूरतों को नजरअंदाज कर केवल अपने पक्ष के वर्गों और राज्यों को अधिक सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाती हैं तो इससे देश का संतुलित विकास संभव नहीं हो पाता।