उत्तर प्रदेश के बदायूं में दो बच्चों की हत्या के मामले को किसी आम आपराधिक घटना की तरह ही देखा जाएगा और अब एक औपचारिकता के तहत कानून अपना काम करेगा। मगर सवाल है कि राज्य की कानून व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाने के दावे के समांतर वहां अपराध की तस्वीर इतनी परेशान करने वाली क्यों है।
कई अपराधों की प्रकृति को देखते हुए ऐसा लगता है मानो अपराधी के भीतर कानून-व्यवस्था या पुलिस का कोई खौफ नहीं था और वारदात को अंजाम देने में उसे कोई बाधा पेश नहीं आई। खबरों के मुताबिक, मंगलवार की शाम को बदायूं में दो युवक पड़ोस के ही एक परिचित के घर में पैसे मांगने का बहाना बना कर घुसे और तीन बच्चों पर चाकू से हमला किया।
दो बच्चों की हत्या कर दी गई, मगर तीसरा बच्चा किसी तरह वहां से भाग गया। फिर आरोपी वहां से फरार भी हो गए। हालांकि घटना के तूल पकड़ने के बाद पुलिस सक्रिय हुई और मुख्य आरोपी एक मुठभेड़ में मारा गया और उसके दो रिश्तेदारों को भी पकड़ा गया है। सवाल है कि सोच-समझ कर इतनी वीभत्स वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी के भीतर पुलिस और कानूनी कार्रवाई का खयाल तक क्यों नहीं आया।
अगर कानून व्यवस्था चौकस होती है तो उसका असर भी दिखता है और अपराधी अपनी मंशा पूरी करने से पहले हिचकते हैं। सिर्फ इतने भर से अपराधों की तादाद में भारी कमी लाई जा सकती है। बदायूं में हत्या के बाद कार्रवाई करने को लेकर पुलिस जितनी चुस्त दिखी, उतनी सक्रियता आमतौर पर क्यों नहीं दिखती कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों के भीतर कोई डर बैठे? विचित्र है कि उत्तर प्रदेश में पिछले कई वर्षों से लगातार यह दावा किया जाता रहा है कि वहां हर स्तर पर अपराध के खिलाफ सबसे सख्त अभियान चलाया गया है और अपराधियों के हौसले पस्त हो गए हैं।
जबकि हकीकत यह है कि राज्य में आए दिन होने वाले अपराध और उनकी प्रकृति सरकारी दावों को आईना दिखाते हैं कि वहां कानून-व्यवस्था और पुलिस की सक्रियता का स्तर क्या है। करीब साढ़े तीन महीने पहले राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने अपनी रपट में बताया था कि हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे जघन्य अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश की तस्वीर बेहद चिंताजनक है। खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में राज्य की स्थिति बेहद अफसोसनाक थी।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में हत्या की ज्यादातर घटनाओं का कारण आपसी विवाद था। इसका मतलब यह भी है कि एक ओर इस तरह के विवादों को शुरुआती स्तर पर निपटाने और उसे अपराध में तब्दील होने से रोकने के लिए राज्य के पास कोई तंत्र नहीं है। वहीं छोटी बातों पर हत्या तक कर डालने वालों के भीतर कानून-व्यवस्था या पुलिस का खौफ नहीं है।
राज्य में सत्ता परिवर्तन में एक मुख्य मुद्दा बेलगाम अपराध था और उससे छुटकारा दिलाने के भरोसे पर ही आम लोगों ने भाजपा को राज सौंपा था। सरकार की ओर से राज्य में अपराध के खात्मे को लेकर जिस तरह के दावे किए जाते रहे हैं, उसके मुताबिक वहां अब तक आम लोगों को आपराधिक घटनाओं से राहत मिल चुकी होती। मगर हालत यह है कि जिन लोगों का किसी से कोई विवाद नहीं रहा होता है, आपराधिक मानसिकता के लोग उन्हें भी शिकार बनाने से नहीं हिचकते।