दिल्ली के विद्यालयों को बम से उड़ा देने की धमकियों का सिलसिला थम नहीं रहा है। शनिवार को एक बार फिर छह विद्यालयों को बम से उड़ाने की धमकी ने एक ओर जहां सरकार के सामने चुनौती खड़ी कर दी है, वहीं आम लोगों के बीच इसका सीधा असर पड़ा है। ई-मेल के जरिए भेजी गई इन धमकियों में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया है, उससे साफ है कि इसके पीछे कोई गहरी साजिश है।

लापरवाही से हो सकता है बड़ा खतरा

पिछले कुछ समय से इस तरह के धमकी भरे ईमेल भेजने का सिलसिला-सा बन गया है। मगर बीते एक हफ्ते में यह तीसरी घटना है, जिससे जाहिर है कि ऐसी धमकियों की अनदेखी या इनके प्रति लापरवाही नहीं बरती जा सकती। इनका मकसद लोगों में यह खौफ पैदा करना है कि उनके बच्चों के ऊपर खतरा मंडरा रहा है।

मिल रही फर्जी धमकियां

हालांकि जांच के बाद सभी धमकियां फर्जी पाई गईं, लेकिन सवाल है कि देश की राजधानी होने और आधुनिक तकनीकी के चरम विकास के दौर में इस तरह के अपराध और अपराधियों पर लगाम लगाना सरकार और पुलिस के लिए मुश्किल क्यों साबित हो रहा है।

मुद्रा भंडार में लगातार आ रही कमी, लोगों के साथ सरकार के लिए खतरे की घंटी

सरकार अक्सर साइबर सुरक्षा के लिए व्यापक तंत्र होने और आपराधिक घटनाओं पर हर स्तर से निगरानी करने तथा आरोपियों की धर-पकड़ को लेकर बढ़-चढ़ कर दावा करती रही है। मगर आए दिन ईमेल के जरिए स्कूलों को बम से उड़ा देने और व्यापक नुकसान पहुंचाने की धमकियां क्या बताती हैं? इसमें संलिप्त आरोपियों को तुरंत पकड़ कर उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई होती तो ऐसा करने वाले अन्य गिरोहों या आपराधिक तत्त्वों के लिए एक संदेश होता।

मगर ऐसा लगता है कि ऐसी धमकियों को सहज माना जाने लगा है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि इन धमकियों के फर्जी होने के बावजूद इससे आम लोगों के भीतर एक अनावश्यक भय पैदा होगा। डिजिटल दुनिया के विस्तार के साथ ज्यादातर लोगों की पहुंच इस तक बनी है और इससे कई सुविधाएं भी हुई हैं। मगर साथ ही साइबर अपराधों का एक नया संजाल खड़ा हुआ है, जिस पर समय रहते लगाम लगाना जरूरी है। अन्यथा ऐसी घटनाओं से उपजे खौफ के माहौल में आम लोगों का सहज रहना दूभर हो जाएगा।