दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के स्कूलों को बम से उड़ाने की बार-बार धमकियां क्यों मिल रही है? विचित्र बात है कि ई-मेल से मिली धमकी की जांच पूरी भी नहीं होती कि एक और धमकी सामने आ जाती है। ई-मेल भेजने वालों तक पुलिस अब तक नहीं पहुंच सकी है। इससे साफ है कि हम डिजिटल भारत बनने का दम तो भरते हैं, लेकिन अब तक इस तरह के साइबर अपराधों पर लगाम लगाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं।
बुधवार को ई-मेल से दोबारा मिली धमकी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारी तकनीकी दक्षता में कमी है या सुरक्षा तंत्र में कोई खामी है। इस बार पचास स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी दी गई। ऐसी लगभग हर धमकी के बाद सुरक्षा एजंसियां सघन तलाशी अभियान चलाती हैं, जिसमें उन्हें अफवाह पाया जाता है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले भी बत्तीस स्कूलों को इसी तरह ई-मेल भेज कर धमकी दी गई थी।
दिल्ली के स्कूलों को फिर मिली धमकी, खाली कराए गये परिसर; चार दिन में तीसरी बार आए ईमेल
निश्चित तौर पर इन धमकियों से अभिभावकों की चिंता बढ़ जाती है। बच्चे भी नाहक तनाव में आ जाते हैं। इसकी गहराई से जांच किए जाने की जरूरत है कि इस तरह की अफवाह फैलाने के पीछे क्या कोई साजिश है या किसी संगठित गिरोह का कोई स्वार्थ है?
दिल्ली के दो स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, मौके पर पहुंचा एंटी बॉम्ब स्क्वाड
सही है कि ऐसी धमकियां अब तक झूठी साबित हुई हैं, लेकिन इसके सच होने की आशंका से एहतियात के तौर पर हर बार स्कूल परिसरों को खाली कराना अनिवार्य होता है। यह सुरक्षा एजंसियों के लिए तो चुनौती होती ही है, वहीं स्कूल प्रशासन को भी संयम से सभी बच्चों की सुरक्षा करनी पड़ती है। इससे उनकी पढ़ाई का भी नुकसान होता है। हैरत की बात है कि दिल्ली पुलिस और अन्य सुरक्षा एजंसियां हर बार मामले की छानबीन करती हैं, पर किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पातीं। यह समझना मुश्किल है कि फर्जी ई-मेल भेजने वाले आरोपी तक पहुंचना इतना मुश्किल क्यों होता है।
पिछले वर्ष मई में भी तीन सौ स्कूलों को सामूहिक मेल भेजा गया था। वह कहां से आया, इसका पता आज तक नहीं चला। जबकि डिजिटल होती दुनिया में सरकारी तंत्र के लिए ऐसी धमकी भरे ईमेल भेजने वाले उसके स्रोत का पता लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिए।
