समाज में संवेदनशीलता, सहिष्णुता और मानवीय करुणा के लगातार हो रहे क्षरण को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। लगता है, इस दौर में मनुष्य सभी मानवीय मूल्यों का परित्याग कर नफरत, भेदभाव और अनैतिकता की राह पर चल पड़ा है। अकारण आक्रोश में और कभी स्वार्थवश वह ऐसी क्रूरता कर बैठता है, जिससे मानवीयता को गहरी ठेस पहुंचती है।

ऐसे में प्राय: निर्दोष लोगों की जान चली जाती है। किसी को भी मार डालने का उन्माद मनुष्य में कोई एक दिन में पैदा नहीं हुआ है। इसे समझने के लिए इसकी जड़ में जाने के साथ समाजशास्त्रीय अध्ययन की भी जरूरत है। आज जिस तरह हैवानियत बढ़ रही है, इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य के मन में न तो प्रकृति के लिए, न बेजुबानों के लिए और न ही इंसानों के लिए करुणा बची है। पिछले दो-तीन दशक में बेशक हम आधुनिक हो गए हों, मगर हमारी प्रवृत्ति कई मामलों में आदिम हो गई लगती है।

दिल्ली में रविवार को हुई घटना इसका उदाहरण है। एक वाहन चालक ने एक रसोइए को महज इसलिए पीट-पीट कर मार डाला कि उसकी बस की सीट और फर्श पर गलती से खाना बिखर गया था। आरोपी ने उसकी हत्या से पहले दिल दहला देने वाली क्रूरता की।

भागदौड़ की जिंदगी के बीच रोजी-रोटी के लिए संघर्ष बढ़ा है। मगर इसी के साथ लोगों में सद्भाव की भावना खत्म हो रही है। अब छोटी-छोटी बातों को लेकर वे न केवल घरों में, बल्कि सड़कों पर भी लड़ने लगे हैं। लोग अब महंगी गाड़ियों में अवश्य चलने लगे हैं, लेकिन किसी की गाड़ी से जरा-सी खरोंच लग जाए, तो वे न केवल असभ्यता से पेश आते हैं, बल्कि शारीरिक क्षति पहुंचाने से भी संकोच नहीं करते।

सहनशीलता, करुणा, क्षमा और मानवीयता मनुष्य के आभूषण हैं। मनुष्यता के ये गुण कैसे लुप्त हो गए? हैवानियत का शिकार संबंधित रसोइया अपनी कमीज उतार कर सफाई कर रहा था, फिर भी आक्रोश में अंधे चालक और उसके साथियों ने उसके साथ बर्बरता की। यह तय है कि सभी आरोपी कठघरे में आएंगे, लेकिन निर्दोष रसोइया कभी घर नहीं लौटेगा।