पिछले करीब दो महीने से भारत और चीन की सीमा पर जो स्थिति बनी हुई है, वह अप्रत्याशित है। जाहिर है, यह पिछले कुछ सालों के दौरान चीन की ओर से भारत को दिए गए तमाम भरोसे के खिलाफ है और विश्वास भंग का मामला है। विडंबना यह है कि भारत की भलमनसाहत और उदारता के बावजूद चीन ने जो रवैया अख्तियार किया, वह सीमा से सटे किसी अच्छे पड़ोसी के बजाय अघोषित दुश्मनी का रहा। पिछले दिनों गलवान घाटी में घुसपैठ और अराजक बर्ताव के साथ उसने जो किया, उसकी कीमत बीस भारतीय सैनिकों की शहादत के रूप में सामने आई।
निश्चित रूप से भारत के विश्वास को तोड़ने के साथ-साथ एक गैर-जिम्मेदार पड़ोसी के रूप में चीन ने बताया कि उसकी रुचि कूटनीतिक पहलकदमियों और वार्ता के जरिए समस्या के हल में नहीं है और वह आक्रामकता में विश्वास रखता है। इस क्रम में कभी अपने नाहक अतिक्रमण और जरूरी प्रतिक्रिया मिलने पर अपने कदम पीछे हटाने जैसी गतिविधियों के जरिए उसने लगातार एक भ्रम की स्थिति बनाए रखी है। ऐसे में सीमा क्षेत्र में देश की सुरक्षा के लिए तैनात सैनिकों पर गैरजरूरी बोझ बढ़ जाता है और कई बार चुनौतियां गहरा जाती हैं।
ऐसे माहौल में एक पखवाड़े के भीतर देश के दो शीर्ष नेतृत्व का सीमा क्षेत्र का दौरा वक्त की जरूरत और निश्चित तौर पर भारतीय सैनिकों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला है। गौरतलब है कि शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लेह और जम्मू-कश्मीर के दो दिनों दौरे पर पहुंचे। इस दौरान चीफ आफ डिफेंस स्टाफ विपिन रावत और सेनाध्यक्ष एमएम नरवाणे भी उनके साथ हैं। चीन के साथ सीमा पर विवाद के संदर्भ उनका यह दौरा अहम माना जा रहा है।
हालांकि इसी महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सीमा-क्षेत्र का दौरा किया था और भारत के रुख का संकेत साफ कर दिया था कि अब विस्तारवाद का युग समाप्त हो चुका है। आशय यह था कि अगर कोई देश अपनी सीमा के विस्तार के लिए नाहक दखल की कोशिश करता है तो अब वह आसान नहीं होगा।
अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी स्पष्ट कर दिया है कि दुनिया की कोई भी शक्ति भारत की एक इंच भी जमीन नहीं ले सकती। यह चीन की हाल की हरकतों के लिहाज से उसके लिए साफ संदेश होना चाहिए कि अगर वह गैरजरूरी तरीके से सीमा क्षेत्र में अतिक्रमण की कोशिश करेगा तो उसे उचित जवाब भी दिया जाएगा।
मुश्किल यह है कि कई बार भारत की ओर से शांति बनाए रखने की कोशिश और विनम्रता को कई बार कुछ देश भ्रमवश कमजोरी के रूप में देखने लगते हैं। इसलिए पहले प्रधानमंत्री और अब रक्षा मंत्री की ओर यह सख्त संदेश चीन के लिए संकेत होना चाहिए। स्पष्ट संदेशों के साथ प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री का सैनिकों के बीच जाने का असर यह हुआ है कि चीन ने अपने कदम पीछे खींचे हैं।
यों भी, भारत ने अब तक अपनी ओर से किसी भी देश की सीमा में बेजा दखल नहीं दिया है, न ही कभी अपनी ओर से आक्रमण किया है। इस संदर्भ में रक्षा मंत्री ने भी कहा कि भारत दुनिया का इकलौता देश है जिसने हमेशा ही विश्व शांति का संदेश दिया है और हमारा चरित्र रहा है कि हमने किसी किसी भी देश के स्वाभिमान को चोट नहीं पहुंचाई है। जाहिर है, दूसरे देशों के स्वाभिमान का खयाल रखने का मतलब यह भी है कि भारत अपने स्वाभिमान को लेकर भी सजग है और इस पर किसी भी देश की ओर से हमला बर्दाश्त नहीं करेगा।