करीब तीन साल पहले जब देश में कोरोना विषाणु के संक्रमण का खतरा पैदा हुआ था, तब विश्व स्वास्थ्य संगठन और देश की सरकार ने इससे बचाव के लिए कुछ सावधानी बरतने की हिदायत दी थी।
इसके तहत मास्क पहनना और लोगों को आपसी दूरी बरतने की सलाह मुख्य थी। इसमें मुख्य संदेश यह था कि चूंकि कोरोना का संक्रमण किसी के संपर्क में आने से हो सकता है, इसलिए इसका कोई इलाज आने तक खुद को बचाना ही एकमात्र उपाय है। मगर जनजागरूकता के मकसद से जारी किए गए इस संदेश के प्रचार का तरीका शायद इतना आक्रामक था कि उसने कई स्तरों पर लोगों के भीतर डर भी पैदा किया। सच यह है कि कुछ लोगों के मन में वह डर इस कदर उतर गया कि उससे उबरना उनके लिए मुश्किल हो गया।
हाल में दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसने ऐसे लोगों को भी हैरान किया, जिन्होंने कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए हर स्तर पर सावधानी बरती थी, मगर खुद को ऐसे डर का शिकार होने से बचाए रखा। खबर के मुताबिक, पति और अपने सात साल के बच्चे के साथ रहने वाली एक महिला के मन में विषाणु के संक्रमण का खौफ इतना गहरे बैठ गया कि वह पिछले तीन साल तक अपने घर में बंद रही।
उसके लिए खाने-पीने या अन्य जरूरत का सामान उसका पति या अन्य कोई दरवाजे पर रख देता था। बच्चे की पढ़ाई के लिए उसने आनलाइन तरीका चुना था। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पूर्णबंदी के पहले चरण में ढील मिलने के बाद उसका पति जब नौकरी के लिए बाहर निकला, तो महिला ने उसे भी घर में प्रवेश नहीं करने दिया। पति को किराए का घर लेकर बाहर रहना पड़ा। जाहिर है, इसे बीमारी के बचाव के लिए बरती गई सावधानी के खौफ और फिर मनोरोग में तब्दील हो जाने के तौर पर देखा जा सकता है।
ऐसी स्थिति में होना यह चाहिए था कि महिला के पति, उसके अन्य रिश्तेदार या पड़ोसियों में से कोई भी पुलिस की मदद लेकर उसे बाहर निकालने की कोशिश करता। हालांकि आखिर महिला के पति ने पुलिस की मदद से ही तीन साल बाद अपने बच्चे और पत्नी को निकाला, लेकिन यह पहल पहले भी की जा सकती थी।
यह एक स्वाभाविक स्थिति होती है कि डर या मानसिक आघात की स्थिति में कोई व्यक्ति अकेला पड़ता है तो वह उसकी जटिलताओं में और ज्यादा फंसता चला जाता है। कोरोना संक्रमण के डर की वजह से महिला इसी स्थिति का शिकार होकर मानसिक रूप से बीमार हो गई। दरअसल, कोरोना के खौफ की वजह से भी कई स्तर पर त्रासद नतीजे सामने आए।
ऐसी खबरें भी आईं कि किसी अन्य राज्य से अपने घर जाने वालों के लिए सरकारों ने खुद एकांतवास की व्यवस्था की थी, कई गांवों में बाहर से आने वालों को रोका गया। लेकिन गुरुग्राम में सामने आया मामला इसी डर की अति का उदाहरण है। इससे यह भी साबित होता है कि समाज और सरकार को भी वैसे तौर-तरीकों पर विचार करने की जरूरत है, जिसमें सावधानी का कोई संदेश डर के मनोविज्ञान का हथियार बन जाता है।