सख्ती और जागरूकता के दावों के बावजूद साइबर धोखाधड़ी रुक नहीं रही, तो आखिर इसकी वजह क्या है? हर वर्ष लाखों शिकायतें दर्ज होती हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर मामलों में गंभीरता दिखाई नहीं देती। देश के भीतर और अन्य देशों में बैठे शातिर अपराधी बड़ी चतुराई से नागरिकों को अपने जाल में फंसा लेते हैं। साइबर अपराध के इतने स्वरूप हैं कि लोग उन्हें समझ नहीं पाते और जीवन भर की गाढ़ी कमाई गंवा बैठते हैं। आज साइबर अपराधी हर वर्ष करोड़ों रुपए की चपत लगा रहे हैं और जांच एजंसियां उन तक पहुंच नहीं पा रहीं।

नतीजा यह कि अपराधी किसी न किसी रूप से लालच देकर या डरा-धमका कर नागरिकों को अपना शिकार बनाते रहते हैं। इसी का परिणाम है कि पिछले वर्ष 22 हजार 845 करोड़ रुपए से अधिक की साइबर ठगी हुई है। जबकि वर्ष 2023 में यह आंकड़ा 7,465 करोड़ रुपए था। लोकसभा में गृह राज्यमंत्री की ओर से दी गई इस जानकारी ने चिंता बढ़ा दी हैं। इससे पता चलता है कि पुलिस तंत्र साइबर अपराधियों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा है।

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आखिर क्या कारण है कि आज के तकनीकी दौर में भी सुरक्षा एजंसियां साइबर धोखेबाजों तक नहीं पहुंच पा रही हैं? हालांकि, पुलिस प्रशासन की ओर से साइबर अपराध से तत्काल और सख्ती से निपटने के दावे किए जाते हैं, बावजूद इसके दर्ज होने वाले मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर वित्तीय धोखाधड़ी के पिछले वर्ष छत्तीस लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए।

अपराधियों के संजाल को खत्म करने की कोशिशों के बीच ये आंकड़े साल-दर-साल बढ़ रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि अगर अपराधी बेखौफ साइबर धोखाधड़ी को अंजाम दे रहे हैं, तो क्या यह पुलिस जांच व्यवस्था की खामी नहीं है? जरूरी है कि आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर व्यवस्था में सुधार किया जाए और अपराधियों को न्याय के कठघरे में लाया जाए। साथ ही आम नागरिकों को भी व्यापक स्तर पर जागरूक करने की जरूरत है, ताकि वे साइबर अपराध की जद में आने से बच सकें।