आम जनजीवन में बहुत सारे काम और सुविधाओं के मामले में इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता के समांतर इसके बहुस्तरीय जोखिम भी बढ़े हैं। अब इंटरनेट के जरिए किसी सुविधा का उपयोग करने वाला आम उपभोक्ता कब किस ठगी या गंभीर अपराध का शिकार हो जाए, कहा नहीं जा सकता। बैंक खातों के संचालन में बिना किसी वजह के अचानक पैदा की जाने वाली बाधाएं, उसमें जमा पैसों में होने वाली गड़बड़ियों से लेकर अन्य कई तरीके से लोगों के परेशान होने की खबरें आए दिन आती रहती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे अनेक मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें किसी देश के सुरक्षा-तंत्र को भी साइबर अपराधियों ने बुरी तरह बाधित कर दिया।
हालत यह है कि बहुत सावधान और इंटरनेट के उपयोग को लेकर जागरूक रहने वाले लोगों को भी अक्सर इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में साइबर दुनिया के विस्तार के समांतर ही आम लोगों के हक में सुरक्षात्मक उपाय भी किए जाने जरूरी हैं। सही है कि सरकारें ऐसे उपाय करती हैं, लेकिन इंटरनेट के जरिए धोखाधड़ी या ‘साइबर अरेस्ट’ जैसे बढ़ते मामले बताते हैं कि इस संबंध में व्यापक स्तर पर एक सुरक्षा तंत्र खड़ा करने की जरूरत है।
इंटरनेट के जरिए होने वाले अपराधों का स्वरूप चूंकि अंतरराष्ट्रीय है, इसलिए इसी स्तर पर सुरक्षात्मक उपाय भी किए जाने चाहिए। इस लिहाज से क्वाड में शामिल देशों अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया और जापान द्वारा एक बार फिर साइबर चुनौती-2024 को जारी रखने की घोषणा महत्त्वपूर्ण है। इसका उद्देश्य साइबर परिवेशी तंत्र को मजबूत करना और साइबर सुरक्षा को लेकर लोगों को शिक्षित करने के साथ-साथ एक ताकतवर साइबर कार्यबल बनाना भी है।
समूची दुनिया में साइबर तंत्र पर बढ़ती निर्भरता के दौर में इससे दूर रहना बेहद मुश्किल है। मगर इसके उपयोग को लेकर पर्याप्त स्तर तक जागरूकता पैदा नहीं हो सकी है। इसलिए क्वाड देशों ने अगर साइबर सुरक्षा के प्रति अपना सरोकार जाहिर किया है, तो यह अच्छा है। जरूरत है कि साइबर दुनिया में एक ऐसा तंत्र बनाया जाए, जिसमें आम लोग इंटरनेट का उपयोग करते हुए पूरी तरह सुरक्षित महसूस करें।