मुंबई से सटे भायंदर इलाके में एक महिला की हत्या और उसकी जैसी प्रकृति सामने आई है, उसने एक बार फिर सबको यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कोई व्यक्ति कैसे इस हद तक जा सकता है कि अपनी ही साथी के खिलाफ इतना बर्बर हो जाए। कई बार ऐसी घटनाओं पर हैरानी होती है कि कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ में किस हद तक क्रूर हो जा सकता है। जिस महिला की हत्या की खबर आई, वह एक पुरुष के साथ सहजीवन में रह रही थी।

जाहिर है, एक महिला किसी पुरुष के साथ संबंधों के इस स्वरूप में साथ रहने का फैसला तभी करती है जब उसे उस पर पूरा भरोसा हो। लेकिन इस मामले में भी यही हुआ कि महज कुछ महीने साथ रहने के बाद पुरुष ने अपनी सहजीवन साथी की हत्या कर दी। मामला केवल हत्या का नहीं है, बल्कि इसकी प्रकृति की भी है। खबरों के मुताबिक आरोपी ने महिला की लाश के घर में ही कई टुकड़े करके, कुकर में उबाल कर उसे कुत्तों को खिला दिया था। जब पुलिस पहुंची तो शव के कुछ ही हिस्से बचे थे।

यों हत्या आखिर एक जघन्य अपराध ही है, लेकिन मुंबई की जो घटना सामने आई है, ऐसे मामलों पर कई बार एकबारगी विश्वास करने में वक्त लग जाता है। आखिर एक सामान्य दिखने वाला इंसान कैसे ऐसा हो जाता है कि अपनी ही साथी को मार डालने के बाद खुद बचने के लिए क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर जाता है। हालांकि सब कुछ लगभग साफ होने के बावजूद आरोपी ने अपने बचाव में पुलिस के सामने दलील पेश की, लेकिन उन पर फिलहाल विश्वास करना मुश्किल है।

पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाएं अक्सर देखी जा रही हैं, जिनमें सहजीवन में रहने वाले किसी पुरुष ने अपनी महिला साथी की न केवल जान ले ली, बल्कि खुद को बचाने के मकसद से उसके शव को ठिकाने लगाने के लिए संवेदनहीनता की सारी सीमाएं पार कर दीं। कुछ समय पहले दिल्ली में भी एक ऐसा ही वाकया सुर्खियों में आया था, जिसमें एक युवक ने अपनी सहजीवन साथी की हत्या करके उसके शव के पैंतीस टुकड़े करके उसे ठिकाने लगाने की कोशिश की थी।

हत्या की आम घटनाओं के बरक्स ऐसी घटनाओं की प्रकृति पर गौर करने पर यही लगता है कि ऐसे अपराध को अंजाम देने वाला व्यक्ति अपने साथ रही महिला के प्रति न सिर्फ पूरी तरह संवेदनहीन होता है, बल्कि स्वकेंद्रित और अपनी सुविधा की जिंदगी जीते हुए वह कई तरह की हिंसक कुंठाओं से घिर जाता है, जो उसे लगातार विकृत बनाती रहती है। ऐसा शख्स खुद पर भरोसा करने वाली स्त्री के खिलाफ भी बेहद बर्बर हो जा सकता है। सहजीवन अभी हमारे देश में एक आम चलन नहीं हुआ है।

खासतौर पर स्त्रियां अगर किसी पुरुष के साथ इस तरह रहना तय करती है तो कई बार वह अपने अस्तित्व को लेकर सजग रहती हैं और अपनी सुरक्षा सहित हर मामले में उस पर पूरा भरोसा करती है। लेकिन यह जीवनशैली चुनने वालों में चूंकि पुरुष अपने पितृसत्तात्मक कुंठाओं से लैस मूल्यों के साथ ही जीता है, इसलिए वह अपनी सुविधा की राह में अपनी सहजीवन साथी को भी नहीं आड़े आने देता।

पुरुषों की इस तरह की सामाजिक-मनोवैज्ञानिक जटिलताओं का खमियाजा स्त्रियों को ही उठाना पड़ता है। जाहिर है, अभी सरकार से लेकर समाज तक को ऐसे अपराधों से कानूनन निपटने के अलावा कई और पहलू पर विचार करने की जरूरत है। सबसे ज्यादा कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर कुछ ठोस पहल करने की जरूरत है, ताकि आपराधिक मंशा रखने वाले लोगों के भीतर कानून का डर बने।