कच्चे तेल की कीमतों का दुनिया की शांति से बड़ा गहरा रिश्ता है। जब से इजराइल-फिलीस्तीन संघर्ष में ईरान शामिल हुआ है, दुनिया बेचैन हो उठी है। आशंका है कि कहीं यह जंग बड़ा रूप न अख्तियार कर ले। अगर ऐसा हुआ तो कच्चे तेल के बाजार में आग लग सकती है। भारत जैसे जो देश तेल के लिए आयात पर निर्भर हैं, उनके लिए खाड़ी के मुल्कों में होने वाली उठापटक रातों की नींद उड़ाने वाली होती है। हालांकि अपनी जरूरत का अस्सी फीसद तेल करीब चालीस देशों से मंगाने वाले भारत को ईरान के घटनाक्रम से ज्यादा खतरा नहीं है, लेकिन अगर इजराइल ईरान के तेल और गैस उत्पादन के ठिकानों को निशाना बनाता है, तो तेल की कीमतें प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकतीं।
मध्य-पूर्व का बढ़ता भू-राजनीतिक तनाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें कैसे बढ़ा सकता है, इसका उदाहरण हाल में मिल चुका है। इजराइल पर ईरानी हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह आशंका जताई थी कि बदले की कार्रवाई में ईरान के तेल ठिकानों को इजराइल निशाना बना सकता है। उनके इस बयान के साथ कच्चे तेल की कीमतों में पांच फीसद इजाफा हो गया।
तेल खपत के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। जिन देशों से भारत को तेल की आपूर्ति होती है, उनमें इराक, सऊदी अरब, अबूधाबी, अमेरिका और रूस समेत चालीस मुल्क शामिल हैं। इतनी ज्यादा जगहों से तेल आयात करने का फायदा यह है कि कुछ देशों में पैदा होने वाली अस्थिरता का असर भारत को तेल आपूर्ति और कीमतों पर नहीं पड़ता है। ईरान से भारत को तेल बहुत मामूली मात्रा में आयात होता है। मगर इजराइल-ईरान का संघर्ष वैश्विक तेल बाजारों में अस्थिरता पैदा कर सकता है। इससे तेल के मामले में मूल्य स्थिरता का संकट पैदा हो सकता है।
रूस से आने वाले तेज की मात्रा में हुआ इजाफा
हाल के वर्षों में तेल आयात से जुड़ा एक और महत्त्वपूर्ण बदलाव यह है कि भारत को रूस से आयातित तेल की मात्रा में कई गुना इजाफा हुआ है। आंकड़ों के अनुसार 2023-24 में रूस से कच्चे तेल की खरीद बढ़ कर 140 अरब डालर के बराबर हो गई है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने से पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा है। मौजूदा वक्त में भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश रूस है। हालांकि भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए अमेरिका और शेष दुनिया से काफी कुछ सुनना पड़ा है।
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इसकी वजह यह है कि यूक्रेन पर आक्रमण करने के कारण रूस से तेल खरीद पर प्रतिबंध लगाया गया था, पर अपनी गुटनिरपेक्ष नीति का हवाला देकर भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखा है। ऐसा सिर्फ भारत नहीं कर रहा है, बल्कि चीन तो और भी ज्यादा (47 फीसद) रूसी तेल खरीद रहा है। बहरहाल, जैसा संकट इस समय इजराइल-ईरान के बीच जारी तनातनी से दिख रहा है, कुछ वैसा ही माहौल पांच वर्ष पहले 2019 में सऊदी अरब की सरकारी और दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी ‘अमराको’ के दो तेल संयंत्रों ‘अब्कैक’ और ‘खुरैस’ पर ड्रोन हमलों के दौरान बना था।
एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि आखिर दुनिया में अब कितना तेल बचा है। बीते कुछ दशकों से पूरी दुनिया में यह बात जोरशोर से प्रचारित की जा रही है कि दुनिया के तेल भंडार बहुत सीमित हैं। जल्दी ही ऐसी स्थितियां आने वाली हैं, जब तेल के कुओं में एक बूंद तेल नहीं बचेगा और इसकी कीमतें आसमान छूने लगेंगी। इस बीच अर्थशास्त्री भी यह अनुमान पेश करते रहे हैं कि ऐसे हालात में कारों का उत्पादन ठप हो जाएगा और बेरोजगारी चरम पर होगी। उधर, वैज्ञानिक सौर ऊर्जा और बिजली से चलने वाले वाहनों (ईवी) को भावी परिवहन व्यवस्था के विकल्प के रूप में पेश करते रहे हैं।
तेज उत्पादन में नहीं होने वाली आपात स्थिति
लेकिन अब यह साफ हो गया है कि कम से कम अगले 50-70 वर्षों में तेल उत्पादन के मामले में कोई आपात स्थिति नहीं पैदा होने वाली है। करीब एक दशक पहले, 2015 में इसकी एक जानकारी तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने अपनी वार्षिक रपट में दी थी कि अकेले सऊदी अरब के अनुमानित तेल भंडारों में 266 अरब बैरल तेल है। इसके मुताबिक प्रतिदिन 1.2 अरब बैरल के उत्पादन के औसत के हिसाब से अगले 70 साल भी तेल का कोई संकट पैदा नहीं होने वाला है।
खर्च के बावजूद सऊदी अरब या इराक आदि देशों के तेल भंडारों में कोई खास कमी नहीं होने के पीछे दो वजहें देखी जा रही हैं। पहली संभावना यह है कि तेल उत्पादक देश नए तेल कुओं की खोज करते रहते हैं। दूसरी संभावना यह भी है कि जिन कुओं से ये देश तेल निकाल चुके हैं, कुछ मामलों में वहां तेल की आपूर्ति प्राकृतिक रूप से फिर हो जाती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1936 से 1970 के बीच सऊदी अरब में जिन तेल ठिकानों की खोज की गई थी, उसी से इतनी तेल आपूर्ति होने लगी कि नए तेल कुओं की खोज की जरूरत नहीं के बराबर रह गई थी। इसके अलावा तेल उत्पादन में कोई कमी नहीं आने का एक अन्य कारण यह है कि अब दूसरे देश भी अपने यहां तेल कुओं की खोज कर रहे हैं और उत्पादन बढ़ा रहे हैं।
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दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक सऊदी अरब को इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका से मिल रही है, जो खुद एक अरसे तक उससे तेल खरीदता रहा है। दावा किया जा रहा है कि जल्द ही अमेरिका के लिए सऊदी अरब का महत्त्व खत्म हो जाएगा। इसकी वजह यह है कि अमेरिका प्रतिदिन 90 लाख बैरल तेल का उत्पादन करने लगा है। यह मात्रा सऊदी अरब के उत्पादन के करीब है।
विश्व राजनीति और तेल आधारित रणनीतियों के समीकरण बदलने में अमेरिकी तेल को अहम माना जा रहा है। अमेरिका के वार्षिक तेल उत्पादन में बीस फीसद की बढ़ोतरी देखते हुए कहा जा सकता है कि वह तेल पर आधारित विश्व व्यवस्था और समीकरणों में प्रभावी दखल देने की हैसियत में आ गया है। इस समय भारत की इस रणनीति ने भी देश को तेल संकट से यथासंभव बचाकर रखा है कि वह आयात के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं है।
हर तरफ चल रहा युद्ध
मौजूदा वक्त में वह भले ही रूस से अपनी चालीस फीसद जरूरतें पूरी कर रहा है, लेकिन वहां से आपूर्ति बाधित होने या रूसी तेल महंगा होने पर आसानी से दूसरे विकल्पों पर अपनी निर्भरता बढ़ा सकता है। इसलिए कह सकते हैं कि इजराइल-ईरान संघर्ष आक्रामक होने या इस जंग का दायरा और बढ़ने की स्थिति में भी तेल आपूर्ति के मामले में भारत काफी हद सुरक्षित रह सकता है।
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विश्व राजनीति और तेल आधारित रणनीतियों के समीकरण बदलने में अमेरिकी तेल को अहम माना जा रहा है। अमेरिका के वार्षिक तेल उत्पादन में बीस फीसद की बढ़ोतरी देखते हुए कहा जा सकता है कि वह तेल पर आधारित विश्व व्यवस्था और समीकरणों में प्रभावी दखल देने की हैसियत में आ गया है। इस समय भारत की इस रणनीति ने भी देश को तेल संकट से यथासंभव बचाकर रखा है कि वह आयात के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं है। मौजूदा वक्त में वह भले ही रूस से अपनी चालीस फीसद जरूरतें पूरी कर रहा है, लेकिन वहां से आपूर्ति बाधित होने या रूसी तेल महंगा होने पर आसानी से दूसरे विकल्पों पर अपनी निर्भरता बढ़ा सकता है।
