आखिरकार प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया। कथित शराब घोटाला मामले में नौ बार समन भेजने के बाद भी वे पूछताछ के लिए नहीं गए। वे प्रवर्तन निदेशालय के समन को अवैध और राजनीति से प्रेरित बताते रहे। फिर उन्होंने कहा कि अगर ईडी अदालत का आदेश ले आए, तो वे पूछताछ के लिए हाजिर हो जाएंगे।

जब उन्हें लगने लगा कि जांच एजंसियां उन्हें गिरफ्तार कर सकती हैं, तो उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में गुहार लगाई कि आम चुनाव तक उनके खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाई जाए। इस पर अदालत ने कोई फैसला नहीं दिया। इस मौके का फायदा उठाते हुए प्रवर्तन निदेशालय ने उनके आवास पर छापा मारा और कुछ देर बातचीत करने के बाद उन्हें अपने दफ्तर ले गई, फिर गिरफ्तार कर लिया।

हालांकि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की आशंका उसी समय से जताई जा रही थी, जब उन्हें चौथा समन भेजा गया था। खुद आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी सार्वजनिक मंचों से कहते फिर रहे थे कि केंद्र सरकार अरविंद केजरीवाल को कभी भी गिरफ्तार करवा सकती है। इसी हफ्ते सीबीआइ ने जब कहा कि शराब घोटाला मामले में अभी कुछ और बड़े लोग गिरफ्तार होंगे, तब पक्का हो गया कि केजरीवाल जल्दी ही सलाखों के पीछे होंगे।

कथित शराब घोटाले को लेकर पिछले एक-डेढ़ वर्ष से खूब सियासत भी हुई है। आम आदमी पार्टी की सरकार पर आरोप है कि उसने गलत तरीके से नई आबकारी नीति बनाई और भारी रिश्वत लेकर लोगों को शराब के ठेके बांट दिए। इस आरोप में आम आदमी के कई नेता और दिल्ली सरकार के अधिकारी गिरफ्तार हो चुके हैं।

भारत राष्ट्र समिति की नेता और केसीआर की बेटी के कविता को भी इस घोटाले में संलिप्तता के आरोप में पिछले हफ्ते गिरफ्तार कर लिया गया। प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि इस पूरे घोटाले के मुख्य षड्यंत्रकारी केजरीवाल हैं। इस तरह उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस मामले के कानूनी पहलू तो अदालत में सुलझेंगे, पर केजरीवाल पर सबसे बड़ा सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि आखिर वे इतने समय तक क्यों जांच एजंसियों के सवालों से बचने का प्रयास करते रहे।

जैसा कि वे दावा करते न थकते थे कि आम आदमी पार्टी कट्टर ईमानदार पार्टी है और उसके पास कुछ भी छिपाने को नहीं है, तो फिर उन्हें कथित शराब घोटाले में सफाई से क्यों बचते फिरना चाहिए था। क्या वे इस बात से अनजान थे कि प्रवर्तन निदेशालय के समन की अवहेलना से उनके खिलाफ मुकदमा बन सकता है।

फिर यह सवाल भी लोगों के जेहन में बना हुआ है कि जब केजरीवाल सचमुच दोषी हैं, उन्होंने ही शराब घोटाले की साजिश रची थी तो प्रवर्तन निदेशालय ने उनकी गिरफ्तारी में इतना समय क्यों लगाया। तीन समन देने के बाद ही उसे उन्हें गिरफ्तार करने का अधिकार था। इसी समय को उसने क्यों चुना, जब लोकसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं।

इससे आम आदमी पार्टी का यह तर्क पुख्ता होता जान पड़ता है कि जांच एजंसियों ने केंद्र के इशारे पर केजरीवाल को चुनाव प्रचार से दूर रखने के मकसद से ऐसा किया। मगर इन राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों और ईडी की कार्रवाई के बाद भी लोगों के मन में यह भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि क्या वास्तव में शराब घोटाला हुआ है और दिल्ली सरकार की उसमें भूमिका है भी या नहीं।