सही है कि हाल के दशकों में ज्यादातर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के क्रम में कोचिंग संस्थानों की भूमिका बढ़ती गई है। बल्कि आज स्थिति यह हो गई है कि शिक्षा जगत के दायरे में इसे कोचिंग उद्योग के नाम से जाना जाने लगा है। मगर इस क्रम में बनी निर्भरता के समांतर बहुत सारे कोचिंग संस्थान अपने यहां दाखिले के लिए जिस तरह के दावे करते हैं, अपनी उपलब्धियों, सुविधाओं और संसाधनों को इस कदर बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं कि कई विद्यार्थी इसके प्रभाव में वहां चले जाते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी अन्य संस्थान में पढ़ाई किए सफल अभ्यर्थी को वे अपने यहां का बता दें। हालांकि कई बार ऐसे दावे झूठे निकलते हैं।

कोचिंग संस्थानों की इस प्रवृत्ति पर कई बार सवाल उठ चुके हैं, सरकार ने सख्ती बरतने की बात कही है, खुद सर्वोच्च न्यायालय भी कह चुका है कि कई कोचिंग संस्थान अभ्यर्थियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। मगर अलग-अलग तरीके अपना कर झूठे दावे करने के चलन पर अब तक रोक नहीं लगाई जा सकी है।

अब एक बार फिर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण यानी सीसीपीए ने कोचिंग संस्थानों की ओर से परोसे जाने वाले भ्रम पर शिकंजा कसने के लिए कड़ी चेतावनी जारी की है। उपभोक्ता अधिकारों से संबंधित इस निकाय ने उनके लिए पिछले वर्ष निर्धारित दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है। इसके तहत कोचिंग संस्थानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके विज्ञापन ‘सटीक, स्पष्ट हों और भ्रामक दावों से मुक्त’ हों; विद्यार्थियों के दाखिले को लेकर बताई जाने वाली जानकारी में पूरी पारदर्शिता हो।

यह छिपा नहीं है कि प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराने के मद्देनजर कोचिंग संस्थान जिस तरह की प्रचार सामग्री जारी करते हैं, उनका केंद्रीय भाव यही होता है कि उनके यहां पढ़ाई करने के बाद सफलता की गारंटी और चयन की संभावना ‘सौ फीसद’ होगी। हकीकत यह है कि कोचिंग संस्थानों और उसमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है और उसके मुकाबले नौकरी के लिए सीटें सीमित या बहुत कम संख्या में होती हैं। ऐसे में सबको ‘सौ फीसद चयन’ की गारंटी देना भ्रम परोसने से कम नहीं है।

गौरतलब है कि आइआइटी-जेईइई परीक्षा के नतीजों की तारीख नजदीक है। आमतौर पर इसी तरह की किसी बड़े महत्त्व की परीक्षा के नतीजों के बाद कई कोचिंग संस्थानों की ओर से ऐसे दावे किए जाते हैं कि उनके यहां पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों ने कामयाबी हासिल की है। इस क्रम में वे कई बार दूसरे संस्थानों के विद्यार्थी का नाम भी फर्जी तरीके से इस्तेमाल करते हैं। इसका मकसद यही होता है कि इस तरह के प्रचार को देख कर नए विद्यार्थी उनके संस्थान में दाखिला लेने को लेकर प्रभावित होंगे और इस तरह उनके कारोबार का विस्तार होगा। जबकि इसके बरक्स हकीकत यह होती है कि बहुत सारे सफल अभ्यर्थियों का ऐसा दावा करने वाले संस्थानों से कोई वास्ता नहीं होता।

कोचिंग संस्थानों को यह स्पष्ट करने की जरूरत महसूस नहीं होती कि सीमित अवसरों के दौर में सभी अभ्यर्थियों की शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी वे किस आधार पर देते हैं। इस तरह के दावे एक तरह से झूठ का कारोबार होते हैं, जिसके जाल में फंस कर बहुत सारे विद्यार्थियों का सपना आमतौर पर अधूरा रह जाता है। ऐसे में अपने संसाधनों और क्षमताओं के बारे में बढ़-चढ़ कर झूठे दावे करने वाले कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगाना वक्त की जरूरत है।