प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है। अब मनुष्य को अगर संभलने का मौका नहीं मिल रहा है, तो इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। धराली में बादल फटने से हुई तबाही से लोग अभी उबरे भी नहीं थे कि जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में ठीक वैसा ही हादसा हुआ। बादल फटने से आई बाढ़ ने तबाही मचा दी। अचानक आए सैलाब में साठ से ज्यादा लोगों की जान चली गई, सैकड़ों लोग लापता हो गए। नियंत्रण रेखा के पास चोशिती गांव में हुआ यह हादसा एक बड़ा सबक है। यह गांव पड्डर घाटी में है और यहां अठारह सौ से लेकर करीब चार हजार मीटर ऊंचे पहाड़ हैं।

जब भी यहां बारिश होती है तो पानी तीव्र गति से नीचे आता है। जिला प्रशासन ने यह तैयारी क्यों नहीं कि अगर कभी बादल फटने की नौबत आई, तो गांव से ऊपर मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं को कैसे बचाया जाएगा? गौरतलब है कि साढ़े नौ हजार फुट ऊंचाई पर स्थित मचैल माता मंदिर जाने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सवाल है कि स्थानीय प्रशासन ने यहां लंगर और दुकानें लगाने की भी अनुमति क्यों दी, यह जानते हुए भी कि जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाएं हर वर्ष बढ़ रही हैं।  

किश्तवाड़ हादसा: ‘अचानक बाढ़ आई और सब बह गए…’, मंजर ऐसा था रूह तक कांप जाएगी

पहाड़ी इलाकों में पहले भी बादल खूब बरसते थे, लेकिन इस तरह बादल नहीं फटते थे। अब बार-बार हो रही तबाही की वजह जलवायु परिवर्तन तो है ही, वहीं पहाड़ों पर अनियंत्रित और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा निर्माण कार्य भी है। नदी के तटों के नजदीक और पहाड़ों की ढलान पर बन रहे घरों ने इस संकट को बढ़ाया ही है। उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में इस तरह की घटनाओं से अब सजग होने और इससे निपटने की जरूरत है।

पहाड़ों पर अधिक संख्या में पर्यटकों के आने, वाहनों की आवाजाही बढ़ने और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने यहां की प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाया है। नतीजा क्षेत्रीय जलचक्र में बदलाव आया है और इससे हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदा बढ़ी है। कुदरत अगर अपना क्रोध प्रकट कर रही है, तो इसे समझने और चेतने का समय है।