यह नागरिक चेतना के अभाव का ही उदाहरण है कि देश के कई राज्यों में सार्वजनिक स्थलों पर साफ-सफाई बनाए रखने के लिए स्वच्छता की नियमावली बनानी पड़ती है। थूकने और गंदगी फैलाने पर नगर निकायों को जुर्माना लगाने के लिए बाध्य होना पड़ता है। किसी भी समाज में यह एक अलिखित शिष्टाचार है कि नागरिक सामाजिक दायित्व का पालन करें। मगर यह निराशाजनक ही है कि अधिकतर लोग स्वच्छता के प्रति लापरवाह दिखाई देते हैं। लिहाजा, उन्हें सचेत करने के लिए जुर्माना लगाना पड़ता है। यह स्थिति तब है जबकि पिछले कई वर्षों से देश में लगातार स्वच्छता अभियान चलाए जाते रहे हैं।

इस बार संसदीय क्षेत्र वाराणसी में नगर निगम ने अपने सीमा क्षेत्र में गंदगी फैलाने, कूड़ा फेंकने और पान-गुटका खाकर थूकने पर जुर्माना लगाने की घोषणा की है। सवाल है कि बार-बार इस तरह के कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ती है। क्या देश और समाज के प्रति नागरिकों की कोई जिम्मेदारी नहीं है?

लोगों में सामुदायिक भावना का अभाव किसी भी समाज की एक निराशाजनक तस्वीर है। यही कारण है कि अक्सर लोग न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन करते, बल्कि सड़कों पर गंदगी फैलाते भी दिख जाते हैं। ऐसे लोग व्यक्तिगत सुविधा की तो चिंता करते हैं, लेकिन सामाजिक दायित्व भूल जाते हैं।

हालांकि साफ-सफाई के लिए जुर्माना वसूलने से पहले नगर निकायों को भी यह देखना चाहिए कि उन्होंने नागरिकों को कितनी और कैसी सुविधाएं दी हैं? अधिकतर बस्तियों और मोहल्लों में कूड़ा उठाने वाले वाहन समय पर नहीं आते। जरूरी जगहों पर जन सुविधा परिसरों का अभाव होता है या उनमें स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता। लंबी दूरी की सड़कों के किनारे कई पेट्रोल पंपों पर बने शौचालय या तो साफ नहीं होते या फिर उसका उपयोग आम लोगों को नहीं करने दिया जाता।

इससे जरूरतमंद पुरुषों और महिलाओं को खासी दिक्कत होती है। अगर देश में स्वच्छता को लेकर चेतना की कमी है, तो इसके लिए समाज और शासन दोनों जिम्मेदार हैं। हम आज तक ऐसा समाज नहीं तैयार कर पाए, जिसमें हर नागरिक में उत्तरदायित्व का बोध हो और वह अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाता दिखे।