रंग-बिरंगी पतंगें उड़ा कर लोग खुश होते हैं, लेकिन जिस चीनी मांझे के सहारे ये उड़ाई जाती हैं, वह कई निर्दोष नागरिकों और मासूम पक्षियों के लिए मौत की डोर से कम नहीं साबित हो रहीं। पतंगबाजी के रोमांच के अब आए दिन जानलेवा होने तक की खबरें आ रही हैं। बावजूद इसके स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अधिकतर लोग चीनी मांझे से पतंग उड़ाते हैं। दरअसल, प्लास्टिक और धातु का मिश्रण होने से यह मांझा इतना धारदार बन जाता है कि इससे उलझ कर हर वर्ष कितने ही पक्षियों की मौत हो जाती है।
कई लोग जख्मी हो जाते हैं। इससे कई लोगों की जान जाने की खबरें भी आ चुकी हैं। सवाल है कि तमाम प्रतिबंध के बावजूद ये मांझे लोगों को मिल कैसे जाते हैं! जबकि हर वर्ष लोगों को संचार माध्यमों से जागरूक किया जाता है। इसके जोखिम के मद्देनजर कई बार अदालतों से आदेश जारी हुए हैं, राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने सख्त रुख अख्तियार किया है। लेकिन आज भी अगर चीनी मांझे बाजार में खुलेआम या चोरी छिपे बिक रहे हैं, तो इसे रोकने में संबंधित एजंसियां नाकाम क्यों हैं। यह किसकी लापरवाही का परिणाम है कि इसकी वजह से पक्षियों के उड़ने की आजादी खतरे में पड़ रही है, सड़क पर वाहन चलाने वाले भी जोखिम की जद में हैं।
कई राज्यों में लग चुका है प्रतिबंध
यह निराशाजनक ही है कि चीनी मांझे पर प्रतिबंध आज तक कारगर साबित नहीं हुए। जबकि चीनी मांझे पर कई राज्यों में रोक है। दिल्ली में वर्ष 2017 से पाबंदी है। इसे बेचने और खरीदने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 15 के तहत सजा और जुर्माने का प्रावधान है। खतरनाक मांझे बेच रहे लोगों पर छापे मारे जाते हैं, कुछ को गिरफ्तार भी किया जाता है।
जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए और ज्यादा ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत
फिर भी चीनी मांझे बेचने और खरीदने का ऐसा क्या जुनून है लोगों में कि जोखिम की आशंका के बारे में जानते-बूझते हुए भी वे न तो सजा से डरते हैं और न किसी जुर्माने से। ऐसी स्थिति में इसके खतरों का दायरा बढ़ाने के लिए वैसे लोग भी जिम्मेदार हैं, जिन्हें सिर्फ अपने रोमांच और मनोरंजन की परवाह है। जाहिर है, इससे उपजी समस्या से पार पाने के लिए सरकार को बहुस्तरीय सख्ती बरतने की जरूरत है।