पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच जब से संवाद की प्रक्रिया ने तेजी पकड़ी है, तब से यह माना जाने लगा है कि कड़वाहट और टकराव के लंबे दौर से आगे निकलते हुए अब दोनों देशों के बीच संबंध पटरी पर आ सकते हैं। खासतौर पर सीमा पर शांति के मुद्दे पर जिस स्तर की सहमति बनी और उस ओर कदम उठाए जाने के भी संकेत आए, तब यह उम्मीद बंधी कि शायद जटिल मसलों के दीर्घकालिक समाधान की राह खुल सकती है।
मगर औपचारिक बैठकों के बरक्स जमीनी स्तर पर हर थोड़े समय के बाद चीन की ओर से कोई न कोई ऐसी गतिविधि शुरू हो जाती है, जिससे उसकी मंशा का पता चलता है। खासतौर पर सीमा पर पांव पसारने को लेकर चीन इस हद तक सक्रिय दिखता है, जो किसी अन्य देश की संप्रभुता के लिहाज से संवेदनशील हो सकता है। सवाल है कि अगर चीन भारत के साथ संबंधों को सहज बनाने और जटिल मसलों के हल के लिए संवाद स्थापित करने की प्रक्रिया की ओर बढ़ना चाहता है, तो जमीनी स्तर पर उसकी गतिविधियां इससे उलट क्यों दिखती हैं।
भारत के सामने चीन ने खड़ी की चिंता
दरअसल, हाल में चीन के दो फैसलों ने भारत के सामने यह चिंता पैदा कर दी है कि अगर ऐसा वास्तव में होता है तब चीन से उम्मीद करने की क्या सूरत बचेगी और पहले से ही जटिल मसले और किस दिशा की ओर बढ़ेंगे। गौरतलब है कि चीन ने लद्दाख क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इलाकों पर प्रकारांतर से अधिकार जताते हुए दो नए प्रशासनिक काउंटी बनाने का एकतरफा फैसला लिया है। यह एक तरह से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ है, जिसका आपसी संबंधों पर दूरगामी असर पड़ सकता है।
1901 के बाद 2024 रहा सबसे गर्म साल, जलवायु परिवर्तन से लोगों की बढ़ी चिंता
स्वाभाविक ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन के फैसले पर ‘अवैध कब्जे’ का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ सख्त विरोध दर्ज कराया है। मंत्रालय की ओर से यह साफ शब्दों में कहा गया है कि हालांकि चीन के नए काउंटी बनाने से न तो क्षेत्र पर भारत की संप्रभुता के संबंध में दीर्घकालिक और सतत स्थिति पर कोई असर पड़ेगा, न ही इससे चीन के अवैध और जबरन कब्जे को वैधता मिलेगी। जाहिर है, भारत का पक्ष इस मसले पर बिल्कुल स्पष्ट है। मगर इसके बावजूद चीन के भीतर विस्तारवाद की कैसी भूख है कि वह गलत तरीके पड़ोसी देशों की सीमा में जबरन अपने पांव फैलाना चाहता है।
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन बना रहा पुल
इससे पहले चीन ने तिब्बत क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर जो विशाल बांध बनाने की घोषणा की है, वह एक तरह से पानी को हथियार बना कर भारत को नियंत्रित करने की उसकी छिपी मंशा ही दर्शाता है। इस बांध को लेकर भी भारत की चिंता स्वाभाविक है, क्योंकि यह चीन को नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित करने की शक्ति देता है। इसके अलावा, यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अगर कभी शत्रुता की स्थिति बनी तो चीन बड़ी मात्रा में पानी छोड़ कर सीमावर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा भी पैदा कर सकता है।
लाखों बच्चे आज भी स्कूली शिक्षा से बाहर, कंप्यूटर और इंटरनेट आधे विद्यालयों में ही उपलब्ध
हैरानी की बात यह है कि चीन की ओर से इस तरह की हरकतें तब सामने आ रहीं हैं, जब दोनों देशों ने करीब साढ़े चार साल से सीमा पर जारी गतिरोध और उसके मुद्दों के समाधान के लिए ठोस राह पर कदम बढ़ाने का फैसला किया था। उम्मीद इसलिए भी बंध रही थी कि आपसी सहमति के बाद सीमा पर टकराव वाले क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी भी सुनिश्चित की जा रही थी। ऐसे में चीन भारतीय क्षेत्र में नाहक दखल देने की अपनी कोशिश को किस पैमाने से उचित ठहरा सकता है?