मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की भारत यात्रा को दोनों देशों के बीच संबंधों के एक नए अध्याय के तौर पर देखा जा सकता है। यों मालदीव को लेकर भारत का रुख हमेशा से सकारात्मक रहा है, लेकिन सोमवार को भारत के प्रधानमंत्री ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि दोनों देश एक-दूसरे के घनिष्ठ मित्र हैं। यह भी कहा गया है कि जो सहायता भारत अभी मालदीव को दे रहा है, वह आगे भी जारी रहने वाली है। निश्चित तौर पर यह भारत की उस विदेश नीति के अनुरूप है, जिसमें ‘पड़ोस प्रथम’ के सिद्धांत को वरीयता दी गई है।
इस क्रम में मालदीव के राष्ट्रपति का यह बयान भी बहुत कुछ स्पष्ट करता है कि दोनों देश एक व्यापक ‘विजन’ दस्तावेज पर सहमत हुए हैं, जो हमारे द्विपक्षीय संबंधों की दिशा तय करेगा। आर्थिक और समुद्री सुरक्षा के मामले में साझेदारी के साथ सहयोग, व्यापक और आर्थिक भागीदारी, डिजिटल और वित्तीय पहलकदमी, ऊर्जा परियोजनाओं, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग आदि पहलू भी शामिल हैं। नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत और मालदीव के संबंधों में आ रही सहजता काफी मायने रखती है।
भारत ने संयम रखा
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब राष्ट्रपति बनने से पहले मुइज्जू ने भारत को लेकर बेहद नकारात्मक रुख अपनाया और ‘भारत बाहर जाओ’ जैसा नारा उछाला था। यही नहीं, राष्ट्रपति बनने के बाद आम रिवायत से हट कर उन्होंने सबसे पहले चीन की यात्रा की। उस दौरान भारत और मालदीव के बीच रिश्तों में एक तरह की तल्खी थी। हालांकि भारत ने अपनी ओर से संयम और धीरज का परिचय दिया। अब बदलती वैश्विक तस्वीर के बीच मुइज्जू की भारत यात्रा का महत्त्व समझा जा सकता है।
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यह भी सच है कि फिलहाल मालदीव गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और उसे तत्काल मदद की जरूरत है। अतीत में भारत ने हर जरूरत के वक्त मालदीव की सहायता की है और शायद उसी के मद्देनजर मुइज्जू ने इस मुश्किल समय में भारत की ओर देखा है। उम्मीद है कि मालदीव की भौगोलिक अवस्थिति, वैश्विक राजनीति में चल रही तेज उथल-पुथल के बीच हकीकत को समझते हुए मालदीव और भारत अपने संबंधों को सहयोग के नए आयाम देने की कोशश करेंगे।