भारत के प्रति चीन का रवैया पहले ही संदेहों के घेरे में रहा है। चीन अपने हित में और विकास के नाम पर जो फैसले करता है, वह कई बार पड़ोसी देशों के लिए जोखिम का वाहक बन जाता है। यह आशंका खासकर इसलिए भी पैदा होती है, क्योंकि पिछले कुछ समय से सीमावर्ती इलाकों में चीन की गतिविधियां उसके भीतर छिपी विस्तारवाद की भूख को दर्शाती हैं। यही वजह है कि अब चीन अपनी विकास यात्रा को आगे ले जाते हुए ऊर्जा उत्पादन के मकसद से ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने जा रहा है, तो उसके इस फैसले से भारत और बांग्लादेश की चिंता बढ़ गई है।

गौरतलब है कि चीन ने तिब्बत पठार के पूर्वी हिस्से में दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की घोषणा की है। चीन यह बांध जिस यारलुंग जांगबो नदी पर बनाने जा रहा है, उसे भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। माना जा रहा है कि इस बांध के जरिए चीन हर वर्ष तीन सौ अरब किलोवाट प्रतिघंटे बिजली पैदा करेगा।

प्रथम दृष्टया यह चीन के अपने दायरे में की जा रही विकास की एक गतिविधि है, लेकिन इसके नतीजे में भारत और बांग्लादेश के सामने कई तरह के जोखिम और अन्य चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। दरअसल, यारलुंग जांगबो नदी भारत में अरुणाचल प्रदेश की ओर मुड़ती है। अगर बांध बनने के बाद चीन किन्हीं स्थितियों में या फिर भू-राजनीतिक तनाव उभरने के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप इसके पानी को नियंत्रित करता है तो इसका सीधा असर भारत में पानी की आपूर्ति पर पड़ सकता है। यानी एक तरह से इससे चीन पर भारत की निर्भरता बढ़ जाएगी।

इसी तरह, इस बांध से अगर बेलगाम तरीके से पानी छोड़ा जाएगा तो भारत के कई इलाकों में अचानक और भयावह बाढ़ से तबाही मच सकती है। भारत की इस चिंता का विस्तार बांग्लादेश में होता है, क्योंकि इसी तरह का प्रभाव वहां भी पड़ेगा। यों चीन अपनी इस योजना का बचाव करते हुए इससे उपजी चिंताओं का समाधान कर लिए जाने की बात कह रहा है, लेकिन उसके इस फैसले से भारत के सामने लगातार आशंका बनी रहेगी।