दक्षिण चीन सागर में पिछले हफ्ते चीन ने विमानवाहक पोत को उड़ा देने वाली मिसाइल का परीक्षण कर अपनी जो ताकत दिखाई है, उससे अमेरिका का तल्ख रुख सामने आना स्वाभाविक ही है। चीन के इस शक्ति परीक्षण के जवाब में अमेरिका ने जिस तरह कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, उससे इस आशंका को बल मिलता है कि आने वाले दिनों में दक्षिण चीन सागर कहीं युद्ध के अखाड़े में तब्दील न हो जाए। इस क्षेत्र में चीन और अमेरिका का बढ़ता सैन्य जमावड़ा बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। अमेरिका का यह कहना कि प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन को एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं करने दिया जाएगा, बता रहा है कि वह चीन से टक्कर लेने की पूरी तैयारी में है।
चीन ने भी आक्रामक जवाब देने में देर नहीं लगाई कि अमेरिका अपने सैनिकों की जिंदगी जोखिम में डाल रहा है। अमेरिका को चीन की यह चेतावनी बता रही है कि वह भी दो-दो हाथ करने को तैयार है। इस साल नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं और डोनाल्ड ट्रंप चीन के मुद्दे का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इससे पहले वे दुनिया में कोरोना महामारी फैलाने और विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को लेकर चीन के खिलाफ बड़ी मुहिम छेड़ ही चुके हैं। जाहिर है, दोनों देशों के बीच तनाव का यह दौर आसानी से खत्म नहीं होने वाला।
इसमें कोई संदेह नहीं कि दक्षिण चीन सागर एशियाई-प्रशांत क्षेत्र में सबसे संवेदनशील इलाका बन गया है। चीन ने यहां अपने द्वीप और सैनिक अड्डे बना लिए हैं। जबकि अमेरिका किसी भी सूरत में इस क्षेत्र में चीन का कब्जा नहीं होने देना चाहता। यह पहला मौका है जब चीन ने दक्षिण चीन सागर में विमानवाहक पोतों को खत्म देने वाली मिसाइलों का परीक्षण किया है और इसमें वह सफल रहा है। अमेरिका इस खतरे को समझ रहा है।
इसीलिए इस इलाके में अपने सहयोगी देशों के साथ सैन्य अभ्यास करते हुए वह अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और चीन की इन हालिया गतिविधियों का बड़ा कारण अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव है। लेकिन जो हो, दोनों देश इस तरह की तनावपूर्ण गतिविधियों से एशिया में क्षेत्रीय संतुलन और शांति के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं।
सामरिक और कारोबारी दृष्टि से चीन के लिए दक्षिण चीन सागर काफी अहम है। यह प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच स्थित समुदी मार्ग से व्यापार का बेहद महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला यह समंदर करीब पैंतीस लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है। दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का बीस फीसद हिस्सा यहां से गुजरता है। सात देशों से घिरे दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन और दूसरे एशियाई देशों के बीच पहले से टकराव चल रहा है और कई बार युद्ध जैसी स्थितियां भी बन चुकी हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की घेरेबंदी के लिए अमेरिका ने आॅस्ट्रेलिया, भारत और वियतनाम का हाथ पकड़ रखा है।
चिंता की बात यह है कि चीन और अमेरिका दोनों ही सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और एटमी शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। लेकिन दुनिया के ये दोनों ताकतवर देश किसी भी संधि या समझौते की पालन नहीं कर रहे, उल्टे एक दूसरे पर संधियों के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं। अगर सुरक्षा परिषद के सदस्य ही युद्ध के ऐसे हालात पैदा करेंगे, तो एशियाई क्षेत्र में शांति कैसे बनी रह पाएगी?