भारत-चीन सीमा विवाद पुराना है, मगर पिछले करीब तीन वर्षों से तनाव की जैसी स्थिति बनी हुई है, उसके समाधान की दिशा में दोनों देश प्रयास करते देखे जाते हैं। गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं और हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें दोनों तरफ के सैनिक शहीद हो गए थे। तबसे भारत लगातार इस प्रयास में है कि ऐसी टकराव की स्थिति दुबारा न आने पाए।

अच्छी बात है कि चीन भी बातचीत की मेज पर आने में टालमटोल नहीं करता। अब तक इस दिशा में उन्नीस दौर की बातचीत हो चुकी है। इन बैठकों में कुछ सकारात्मक नतीजे भी निकले हैं। गोगरा हाटस्प्रिंग से दोनों देशों की सेनाओं ने अपने कदम वापस खींचे। मगर पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के वापस लौटने पर अभी तक कोई व्यावहारिक रास्ता नहीं बन पा रहा है।

रपटें बताती हैं कि चीन ने अब भी भारत के कई गश्ती बिंदु अवरुद्ध कर रखे हैं। भारत चाहता है कि वह उन बिंदुओं से वापस लौट जाए। उन्नीसवें दौर की बातचीत में भी यही मुद्दा प्रमुख था। हालांकि चीन के रुख से लगता है कि वह भी इस मसले का कोई व्यावहारिक समाधान चाहता है। इसकी कई वजहें भी स्पष्ट हैं।

इसी महीने ब्रिक्स सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की मुलाकात होनी है। इसलिए भी उससे पहले उन्नीसवें दौर की बातचीत तय हुई। जी-बीस देशों के बाली सम्मेलन में जब दोनों नेता मिले थे, तब चीनी राष्ट्रपति ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर व्याप्त तनाव समाप्त करने को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया था। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि चीन बेशक वैश्विक मंचों या बातचीत की मेज पर समाधान में रुचि दिखाता है, मगर वहां से वापस लौटते ही अपने वादों से मुकर जाता है।

इसका बड़ा उदाहरण चीनी राष्ट्रपति का भारत दौरा है, जब उन्होंने यहां आकर शांति का आश्वासन दिया था, मगर उनके लौटते ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ गया था। दरअसल, चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते भारत से लगी सीमाओं पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करता रहता है।

फिर पिछले कुछ सालों से जिस तरह भारत की नजदीकी अमेरिका से बढ़ी है और अर्थव्यवस्था के मामले में भी वह चीन से प्रतिस्पर्धा में खड़ा दिखने लगा है, तबसे चीन कुछ अधिक असहज देखा जाता है। लद्दाख में चीनी सेनाओं की पैठ उसी का नतीजा थी। मगर अब चीन को इस बात का अहसास है कि भारत उसकी धौंस से विचलित होने वाला नहीं।

पिछले तीन वर्षों में भी भारत की सामरिक शक्ति लगातार बढ़ी है। उसके आयुध भंडार में देशी तकनीक से बने और विदेशी खरीद से आए साजो-सामान उसे टक्कर देने के लिए काफी हैं। फिर जिस तरह बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है और दुनिया के बहुत सारे देश उसकी अहमियत को रेखांकित करने लगे हैं, उसमें चीन के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लंबे समय तक तनाव का वातावरण बनाए रखना किसी भी रूप में फायदेमंद नहीं हो सकता।

मगर उसने भारतीय क्षेत्र में जिस तरह सड़कों, पुलों और बस्तियों के निर्माण का नक्शा तैयार कर रखा है, उसे वापस लेना उसके लिए कठिन लगता है। मगर वह बार-बार बातचीत की मेज पर आता है, उसका रुख सकारात्मक रहता है, वह आश्वस्तिकर है कि जल्दी ही इस दिशा में व्यावहारिक समाधान निकलेगा और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टकराव की स्थितियां टलेंगी।