प्रकृति के साथ जीवन बिताना और उसका संरक्षण भारत की संस्कृति में घुला रहा है। लेकिन वक्त के साथ बदलती दुनिया में भौतिकवाद और तकनीक पर आधारित जनजीवन का बड़ा असर पर्यावरण पर पड़ा है और अब यह वैश्विक चिंता का भी कारण बनता जा रहा है। यही वजह है कि न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में पर्यावरण को स्वच्छ बनाने या संरक्षण को लेकर आए दिन नई योजनाओं और कार्यक्रमों पर विमर्श चल रहा है, उस पर अमल भी हो रहा है। इसी क्रम में भारत में भी कई तरह की पहलकदमियां होती रही हैं।

अब केंद्र सरकार की ओर से एक नई पहल के तहत देश भर में युवाओं को पर्यावरण से जोड़ने के लिए नई योजनाओं और रणनीति को लागू किया जाएगा। इस मसले पर गुरुवार को राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, नई दिल्ली और राज्य संग्रहालय, लखनऊ ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत दोनों संस्थाएं पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा की दिशा में मिल कर काम करेंगी और इसके लिए स्कूल और कालेज के युवाओं को जोड़ा जाएगा।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय की स्थापना राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देने के मकसद से भी हुई है। इसी दिशा में अपने कार्यक्रमों के विस्तार के मकसद से इसने देश के दक्षिणी, मध्य, पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में अपने चार क्षेत्रीय संग्रहालयों के जरिए अपनी सेवाओं और अपने दृष्टिकोण पर एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम तैयार किया है। राज्य संग्रहालय, लखनऊ के साथ ताजा समझौता इसी दृष्टिकोण को जमीन पर उतारने की कोशिशों की एक कड़ी है।

दरअसल, मौजूदा दौर में दुनिया भर में चल रही तकनीकी प्रगति के दौर में जैसे-जैसे भौतिकता का विस्तार हो रहा है, आम जनजीवन में तकनीकी सुविधाओं का उपभोग सामान्य होता जा रहा है, लोग प्रकृति और उसके अनिवार्य तकाजों की ओर से उदासीन हो रहे हैं। हालांकि आए दिन लगभग हर जगह पर्यावरण को लेकर जताई जाने वाली चिंताएं आम दिखती हैं, इस मसले पर अनेक संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन इसी अनुपात में जागरूकता का प्रसार नहीं हो पा रहा है।

अगर केवल प्लास्टिक के उपयोग के ही उदाहरण पर गौर किया जाए तो ज्यादातर लोग जानते हैं कि इसके इस्तेमाल का नुकसान कितना घातक और दीर्घकालिक असर रखता है, लेकिन इससे बचना किसी को जरूरी नहीं लगता।

यह स्थिति लगभग सभी मामलों में है। इसकी एक जड़ बचपन और किशोरावस्था से लेकर युवा होने के क्रम में आम चलन का सामना करना होता है। कोई बच्चा अपने सामने वैसी चीजों और सुविधाओं का उपयोग आमतौर पर होता पाता है, उसमें सुविधा भी महसूस करने लगता है, जो आगे चलकर न केवल उसके लिए, बल्कि व्यापक तौर पर प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती है। शायद यही वजह है कि केंद्र सरकार की ताजा पहल में स्कूल और कालेज के बच्चों और युवाओं को पर्यावरण संरक्षण की नई पहल में जोड़ने की जरूरत महसूस की गई है। यों भी, अगर किसी मामले में व्यापक बदलाव की जमीन तैयार करनी है तो उसमें किशोर और युवा आबादी को सक्रिय रूप से शामिल करना होगा।

हालांकि बीते कुछ दशकों से लगातार पर्यावरण को स्वच्छ बनाने या संरक्षण के लिए चल रहे प्रयासों के बीच बड़ी तादाद में युवाओं को जागरूक करने में मदद मिली है, लेकिन वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान और अन्य स्थानीय कारकों के चलते प्रकृति की सहज गति पर नकारात्मक असर को कम करने के लिए अगर संबंधित संस्थाएं एक ठोस कार्यक्रम के साथ स्कूल-कालेजों के युवाओं का सक्रिय साथ लेती हैं, तो निश्चित तौर पर इस मोर्चे पर एक बेहतर भविष्य की उम्मीद की जा सकती है।