विद्यालयों को शिक्षा का मंदिर माना जाता है। वहां शिक्षकों पर विद्यार्थियों का भविष्य संवारने का दायित्व है। दुखद है कि अभिभावक जिन विद्यालयों में बच्चों को पढ़ने और भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए भेजते हैं, वहां कई बार खुद शिक्षक ही उन्हें अनुचित तरीके से काम कराते हैं। ऐसी हरकतों से शिक्षा व्यवस्था पर तो सवालिया निशान लगता ही है, साथ ही विद्यालयों में छोटे बच्चों के साथ व्यवहार को लेकर भी सवाल उठते हैं। सहारनपुर में एक प्राथमिक विद्यालय का वीडियो सुर्खियों में आया, जिसमें कुछ बच्चे स्कूल परिसर में और शिक्षकों की मौजूदगी में खड़ी कार धोते दिखाई दे रहे थे।
बालश्रम कानून का भी हो रहा है उल्लंघन
इस घटना पर कोई कैसी भी सफाई दे, लेकिन इससे स्पष्ट है कि कई विद्यालयों में जमीनी स्थिति क्या है। हालांकि इस मामले में खंड शिक्षा अधिकारी को जांच सौंपी गई है, लेकिन सवाल है कि स्कूलों में बच्चों का इस तरह शोषण करने की बात किसी शिक्षक के दिमाग में आई भी कैसे! विद्यालयों में शिक्षा और खेल गतिविधियों को छोड़ कर बच्चों से कोई भी अन्य कार्य न कराने के स्पष्ट निर्देश हैं, लेकिन कुछ शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों को भूल कर बाल श्रम कानून का तो उल्लंघन करते ही हैं, शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देश की भी धज्जियां उड़ाते हैं।
यह इस तरह की कोई अकेली घटना नहीं है। आए दिन किसी स्कूल के छोटे बच्चों से अनुचित तरीके से साफ-सफाई या अन्य काम कराने की खबरें आती रहती हैं। क्या यह समूचे शिक्षा तंत्र के लिए शर्मिंदगी की बात नहीं कि किसी बच्चे को कक्षा की साफ-सफाई के लिए झाड़ू थमा दिया जाता है या फिर परिसर में किसी निर्माण कार्य के लिए मिट्टी ढोने या ईंटे उठाने में लगा दिया जाता है? सहारनपुर की घटना इसलिए सामने आई, क्योंकि किसी ने उसका वीडियो बना लिया।
कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के ही बांदा जिले में एक निजी विद्यालय के शिक्षक पर आरोप लगा कि वे घर के निर्माण कार्य में स्कूल के बच्चों की मदद ले रहे थे। ऐसे तमाम मामलों की जांच होती है, उसकी रपट भी आती है। मगर क्या कार्रवाई होती है, किसी को पता नहीं चलता। विद्यालयों से आने वाली ऐसी बदरंग तस्वीरें समाज को व्यथित करती हैं। ऐसी घटनाओं से शिक्षा व्यवस्था पर भी अंगुली उठना स्वाभाविक है।