भारत में बाल तस्करी बढ़ने का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। भुखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी की वजह से गरीब परिवारों के बच्चे सर्वाधिक असुरक्षित हैं। आजीविका का साधन न होने के कारण लोग अपने बच्चों को किसी न किसी काम में लगा देते हैं। बाल तस्करों की नजर अस्पतालों में जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं पर ही नहीं, ऐसे बच्चों पर भी होती है जो ढाबों-होटलों और ईंट-भट्ठों पर काम कर रहे होते हैं। इन्हें अगवा कर बेच दिया जाता है।

कई बच्चे भीख मंगवाने वाले गिरोह के चंगुल में फंस जाते हैं। बच्चियां यौन शोषण का शिकार होती हैं। आदिवासी इलाकों से बच्चे रहस्यमय ढंग से लापता हो जाते हैं। थानों में उनकी सुनवाई नहीं होती। एक अस्पताल से नवजात शिशु के गायब होने और उसे बेचे जाने के मामले में शीर्ष न्यायालय ने उचित ही कड़ा रुख दिखाया है। इसमें दोराय नहीं कि बाल तस्कर समाज के दुश्मन हैं। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है। अगर अस्पतालों से शिशु गायब होते हैं, तो उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उनके लाइसेंस रद्द होने चाहिए।

पुलिस जल्दी दर्ज नहीं करती मुकदमा

यह छिपी बात नहीं कि भारत में बच्चों को किस तरह अगवा कर उनका बचपन छीना जा रहा है। उन्हें बालश्रम और यौन कर्म में तो झोंका ही जाता है, अंग तस्करी का शिकार बना कर उनकी जान को जोखिम में डाल दिया जाता है। यह मानवीय गरिमा के खिलाफ है। ताजुब्ब है कि इस तरह की गतिविधियां पुलिस तंत्र की नाक तले वर्षों से चल रही हैं। एक तरफ तो बच्चों के गायब होने की रपट आसानी से लिखी नहीं जाती, दूसरी तरफ बहुत कम बच्चे तस्करों के चंगुल से छूट कर घर लौटते हैं।

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उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, ओड़ीशा और मध्यप्रदेश में बाल तस्करी के मामले अधिक दर्ज होते हैं। यहां ऐसे मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। हालांकि अभिभावकों के जागरूक होने से मामले दर्ज होने लगे हैं। वहीं देश भर की अदालतों में बाल तस्करी के कई मामले लंबित हैं। शीर्ष अदालत के ऐसे मामलों की जानकारी देने और जल्द सुनवाई पूरी करने के निर्देश से बाल तस्करी के मामलों पर लगाम लगने की उम्मीद बनी है।