दुनिया में जैसे-जैसे आधुनिक तकनीकी का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे रोजमर्रा की जिंदगी में इसका दखल बढ़ता जा रहा है। जो मोबाइल फोन कभी दूर बैठे दो लोगों के बीच सिर्फ बातचीत का जरिया था, आज वह ज्यादातर कामों के लिए बेहद जरूरी होता गया है। अब तो इसके बिना पढ़ाई-लिखाई की बात भी अधूरी लगने लगी है। मगर इसी के समांतर स्मार्टफोन के अतिशय उपयोग ने एक बहस खड़ी की है कि शिक्षा के लिए स्मार्टफोन पर निर्भरता से क्या बच्चों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी टीम के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2024 के अंत तक पंजीकृत कुल शिक्षा प्रणालियों में से चालीस फीसद ने विशेष कानूनों या नीतियों के जरिए स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, शिक्षा के क्षेत्र में स्मार्टफोन का बहुस्तरीय उपयोग का दायरा और असर शिक्षा प्रणालियों में इसके उपयोग को एक तरह से अनिवार्य बनाए जाने की व्यवस्था से जुड़ा प्रश्न है। दूसरी ओर, दुनिया के कई देशों में बच्चों की शिक्षा और निजता पर इसके प्रभाव को लेकर अब नई बहस शुरू हो गई है, जिसमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य एक जरूरी पक्ष है।
मोबाइल फोन के उपयोग का दिया जा रहा बढ़ावा
आनलाइन शिक्षा कार्यक्रमों के दौरान मोबाइल फोन के उपयोग को बढ़ावा तो दिया गया है, लेकिन जब इस मसले पर समीक्षा की गई तो यह उजागर हुआ कि तकनीक एक सीमा तक कुछ संदर्भों में सीखने में सहायक कारक की भूमिका निभा सकती है, लेकिन जब इसका अत्यधिक या फिर अनुचित तरीके से उपयोग किया जाता है, तो इसके विपरीत असर देखने में आते हैं।
कई महीनों की तैयारी के बाद भी हुआ हादसा
एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि इसके इस्तेमाल की वजह से विद्यार्थियों का ध्यान पढ़ाई से भटक जाता है। इसके अलावा, स्मार्टफोन के बेलगाम उपयोग की वजह से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां खड़ी होती हैं, उससे निपटना एक अलग समस्या बन जाती है। इसलिए जरूरी है कि स्मार्टफोन या अन्य तकनीक के रोजमर्रा के जीवन में उपयोग को लेकर एक सीमा तय हो, ताकि यह सिर्फ सहायक बने, निर्भरता और नुकसान का वाहक न बने।