देश के विभिन्न नक्सल प्रभावित इलाकों में धीरे-धीरे शांति देखी जाने लगी है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड आदि में अब पहले की तरह नक्सली हमलों में कमी दर्ज हुई है। मगर छत्तीसगढ़ अब भी नक्सलियों का गढ़ बना हुआ है। उन पर काबू पाने के लिए राज्य और केंद्र के अभियान लगातार चलाए जाते हैं। इसमें अक्सर नक्सलियों के मारे जाने की खबरें आती रहती हैं। मगर इससे नक्सलियों पर पूरी तरह लगाम लगा पाना अब भी चुनौती बना हुआ है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि अगले साल तक नक्सलवाद का सफाया कर दिया जाएगा। इसके मद्देनजर छत्तीसगढ़ के सघन वनों में नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज कर दिए गए हैं। मगर सुरक्षाबलों की कार्रवाई के जवाब में नक्सली भी बड़े हमले करने की साजिशें रचने में कामयाब देखे जाते हैं। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुआ ताजा नक्सली हमला इसी का एक उदाहरण है।

छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में आईईडी विस्फोटक का हुआ इस्तेमाल

बताया जा रहा है कि कुछ दिनों पहले सुरक्षाबलों के अभियान के जवाब में नक्सलियों ने यह हमला किया। जब दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बीजापुर का संयुक्त दल तलाशी अभियान से वापस लौट रहा था, तब घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने उनके वाहन पर हमला कर दिया। इसमें आठ सुरक्षाकर्मी और एक वाहन चालक मारे गए।

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इस हमले में आईईडी विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। इसकी शक्ति आम विस्फोटकों से कई गुना अधिक होती है। सरकार अक्सर दावा करती है कि नक्सलियों का लगभग सफाया कर दिया गया है और अब वे कुछ सीमित इलाकों तक सिमट कर रह गए हैं। मगर यह समझना मुश्किल है कि इतनी चौकसी के बावजूद नक्सलियों के पास अत्याधुनिक हथियार और विस्फटोक किस तरह और कहां से पहुंच पा रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर और दंतेवाड़ा क्षेत्र में सघन जंगल होने की वजह से नक्सलियों के खिलाफ अभियान में मुश्किलें आती हैं।

नक्सलियों का गढ़ बना हुआ है छत्तीसगढ़

उनकी तलाशी और उन पर नजर रखना कठिन है। यही इलाका नक्सलियों का गढ़ बना हुआ है और सबसे अधिक इसी क्षेत्र में वे सुरक्षाबलों पर हमले करने में कामयाब होते हैं। मगर यह समस्या कोई नई नहीं है। इसके लिए हेलीकाप्टर से टोह लेने की योजना बनी थी। वैसे भी आजकल इतने अत्याधुनिक टोही उपकरण उपलब्ध हैं कि उनसे जंगलों में चल रही गतिविधियों का पता लगाना मुश्किल नहीं माना जा सकता। इसके बावजूद अगर नक्सली सुरक्षाबलों की योजनाओं और गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए रख पा रहे हैं, विस्फोटक और हथियार हासिल करने में कामयाब हो जा रहे हैं, तो इससे सुरक्षाबलों को अपनी रणनीति में बदलाव की अपेक्षा की जाती है।

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नक्सलवाद का उभार आदिवासी इलाकों में जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा के लिए हुआ था, मगर अभी वह जिस रूप में अपनी जड़ें जमा चुका है, वह आतंकी गतिविधियों की शक्ल अख्तियार करता गया है। अब तो उनमें सरकार के साथ बातचीत का रुख भी नजर नहीं आता। अगर उन तक अत्याधुनिक हथियार और विस्फोटक पहुंच रहे हैं, तो जाहिर है, उनके पास बाहर से वित्तीय मदद भी पहुंच रही है।

इन सबके रास्ते सुरक्षाबलों और खुफिया तंत्र की नजर से कैसे ओझल बने हुए हैं, समझ से परे है। नक्सलवाद के खात्मे का भरोसा तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक कि उन तक पहुंचने वाली वित्तीय मदद, हथियार, विस्फोटकों और अत्याधुनिक सूचना तकनीक आदि पर अंकुश न लगा ली जाए।