तीर्थस्थल लोगों की आस्था के साथ-साथ पर्यटन, रोजगार और राजस्व अर्जन के महत्त्वपूर्ण केंद्र होते हैं। अपेक्षा की जाती है कि ऐसी जगहों पर लोगों की आवाजाही, रुकने-ठहरने, खाने-पीने की समुचित और सुविधाजनक व्यवस्था हो। सरकारें तीर्थस्थलों के विकास और वहां श्रद्धालुओं-सैलानियों को आकर्षित करने का प्रयास करती हैं। इस दृष्टि से अनेक तीर्थस्थलों तक पहुंचने वाली सड़कों को चौड़ी करने, सुरंगों, उपरिगामी पुलों आदि के निर्माण, होटल, मोटेल आदि की सुविधाएं विकसित करने के प्रयास किए गए हैं। इसका असर भी नजर आता है। अनेक तीर्थस्थलों पर लोगों की आवाजाही काफी बढ़ गई है। मगर इसके साथ ही इन जगहों पर कमाई की होड़ में कई अव्यवस्थाएं भी पनपी हैं।
इसका नतीजा यह है कि दुर्गम जगहों, पहाड़ों के तीर्थस्थलों पर हादसे बढ़े हैं, जिनमें हर वर्ष बहुत सारे श्रद्धालुओं-सैलानियों की जान चली जाती है। इस मामले में उत्तराखंड के तीर्थस्थलों पर अव्यवस्था की वजह से होने वाले हादसों को लेकर सबसे अधिक सवाल उठते हैं। इस वर्ष चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद से, दो महीनों के भीतर, सड़क दुर्घटनाओं, हेलिकाप्टर हादसे आदि की वजह से करीब साठ लोगों की जान जा चुकी है। हालांकि प्रशासन का दावा है कि वह यात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखता है, पर सच्चाई यह है कि अव्यवस्था के कारण चारधाम यात्रा में कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
निर्माण कार्यों की वजह से उत्तराखंड के पर्यावरण को भारी नुकसान
यों, सैलानियों की बढ़ती तादाद और उनकी सुविधाओं के मद्देनजर किए जा रहे निर्माण कार्यों की वजह से उत्तराखंड के पर्यावरण को पहुंच रहे भारी नुकसान को लेकर लंबे समय से आवाजें उठती रही हैं। वहां के पहाड़ भंगुर हैं, निर्माण कार्यों और अतार्किक ढंंग से बन रहे भवनों, सड़कों आदि के कारण उनमें दरारें पड़ने की शिकायतें आती रहती हैं। तेज बरसात में भूस्खलन से जब-तब तबाही के मंजर उपस्थित हो जाते हैं। इसलिए इस बात पर जोर दिया जाता रहा है कि वहां सैलानियों और पर्यटन संबंधी गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखी जाए, उन्हें नियंत्रित और संतुलित किया जाए, ताकि अधिक भीड़भाड़ से असुविधाओं और जोखिम की स्थिति न बने। पर प्रशासन ने जैसे वहां कारोबारियों को मनमानी की छूट दे रखी है।
इसी का नतीजा है कि हेलिकाप्टर सेवा उपलब्ध कराने वाले तय मानकों को ताक पर रखते हुए उड़ान भरते रहते हैं। यही हाल वहां टैक्सी आदि की सेवाएं उपलब्ध कराने वालों का है। हालांकि उत्तराखंड के तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल इस मामले में अपवाद नहीं हैं, हर तीर्थस्थल पर कमोबेश यही हाल है।
जिन जगहों पर अधिक भीड़भाड़ इकट्ठा होने का अनुमान रहता है, वहां कायदे से लोगों की आवाजाही को नियंत्रित करने के ठोस उपाय होने चाहिए। मगर ज्यादातर धार्मिक स्थलों पर यात्रियों को उनके भरोसे छोड़ दिया जाता है। कहीं-कहीं कभी-कभार कुछ स्वयंसेवक, लोगों को संभालते देखे जाते हैं, पर भीड़ अधिक हो जाने पर वे भी अवश हो जाते हैं, जिसका नतीजा कई बार हादसों में सामने आता है।
अमरनाथ यात्रा की एक व्यवस्था बनी हुई है, जिसमें श्रद्धालुओं का पंजीकरण किया जाता है, उन्हें अलग-अलग समय पर आगे बढ़ने दिया जाता है। चारधाम यात्रा में भी अगर भीड़भाड़ काफी बढ़ती देखी जा रही है, तो वहां ऐसी ही कोई व्यवस्था क्यों नहीं की जाती, जिसमें यात्रियों को चरणबद्ध तरीके से रवाना किया जाए और सुरक्षित वापस लौटाया जा सके।