मुंबई में फेसबुक पर सीधे प्रसारण के दौरान शिवसेना (यूबीटी) के एक पूर्व विधायक के बेटे की जिस तरह गोली मार कर हत्या कर दी गई, वह अपने आप में एक दहला देने वाली घटना है। इसमें हत्या करने वाले व्यवसायी ने खुद को भी गोली मार कर खुदकुशी कर ली। इसलिए यह मामला बेहद उलझ गया लगता है।

हालांकि शुरुआती जांच के मुताबिक दोनों में लंबे समय से निजी दुश्मनी थी और इसी प्रतिद्वंद्विता में उनके बीच पहले भी टकराव हो चुके थे, मगर वह एक-दूसरे के लिए परेशानी पैदा करने तक सीमित था। कुछ समय पहले दोनों के बीच सुलह हो गई थी और उन्होंने अपने इलाके के हित के लिए मिल कर काम करने की घोषणा की थी।

मगर ताजा घटना से यह साफ है कि पहले की दुश्मनी इस हद तक थी और उसकी जड़ें इतनी गहरी थीं कि फेसबुक पर बातचीत के सीधे प्रसारण के दौरान हत्या की यह त्रासद घटना हुई। संभव है कि इस वाकये की जांच में कुछ प्रत्यक्ष कारणों से इतर कुछ और वजहें भी सामने आएं, मगर इतना साफ है कि मरने वाले दोनों लोगों के बीच संबंधों में जैसी तल्खी थी, उसका अंजाम कुछ भी हो सकता था।

हालांकि राजनीति की दुनिया में कब आपसी टकराव दुश्मनी की शक्ल ले ले या फिर आम लोगों को चौंकाते हुए सुलह सामने आ जाए, कहा नहीं जा सकता। हाल ही में महाराष्ट्र के ही उल्हासनगर में एक भाजपा विधायक और उसके एक साथी ने जमीन विवाद की वजह से एकनाथ शिंदे के गुट वाले शिवसेना के एक नेता पर पुलिस थाने के भीतर गोलीबारी कर दी थी।

इस तरह की आपराधिक घटनाओं को अब जिस तरह बिना किसी हिचक के सार्वजनिक रूप से अंजाम दिया जा रहा है, उससे लगता है कि कानून-व्यवस्था का खौफ खत्म हो गया है। सोशल मीडिया पर बातचीत के सीधे प्रसारण के दौरान हत्या की घटना यह बताती है कि जब दुश्मनी का रूप बेहद जटिल हो जाता है, तब शायद बहुत सोच-समझ कर ऐसा तरीका आजमाया जाता है, जो व्यापक पैमाने पर लोगों पर असर डाले। अपराध की यह बदलती प्रकृति सरकार और पुलिस-प्रशासन के लिए एक चुनौती है कि इनसे कैसे निपटा जाए। मगर कानून का खौफ कायम कर अपराध की रोकथाम भी संभव है।