देश की आबादी में एक खासा हिस्सा उन लोगों का है, जो अपनी उम्र के साठ वर्ष पूरे कर चुके हैं। सामान्य जीवन और प्राकृतिक संरचना के मुताबिक भी इस उम्र में व्यक्ति का शरीर आमतौर पर कमजोर होता जाता है और कई बार बीमारियों से भी घिर जाता है। ऐसे मामले अक्सर देखे जाते रहे हैं, जिसमें किसी बुजुर्ग सदस्य को बीमारी में उचित इलाज सिर्फ इसलिए नहीं मिल पाता कि उनके पास चिकित्सक से परामर्श लेने और उपचार के लिए जरूरी खर्च का पैसा नहीं होता।

ऐसे में या तो उन्हें आसपास से ऋण लेकर अपना उपचार कराना पड़ता है या फिर उचित इलाज के बिना उनकी सेहत और खराब होती चली जाती है। इस लिहाज से देखें तो केंद्र सरकार ने जिस तरह आयुष्मान भारत योजना का विस्तार करते हुए सत्तर वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को भी पांच लाख रुपए तक के स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने को मंजूरी है, वह एक दूरगामी महत्त्व का फैसला है। सरकार के इस फैसले के धरातल पर उतरने के बाद देश के छह करोड़ से ज्यादा वरिष्ठ नागरिकों को इसका लाभ मिल सकेगा।

यह छिपा नहीं है कि हमारे यहां बुजुर्गों की आबादी के सामने अपने जीवन और स्वास्थ्य को लेकर कैसी चुनौतियां रही हैं। यह भी जगजाहिर है कि उम्र बढ़ने के साथ और खासतौर साठ वर्ष या इससे ज्यादा की आयु में पहुंचने के बाद ज्यादातर बुजुर्ग स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की चुनौतियों से जूझते रहते हैं। मगर उनके जीवन का यही वह दौर है, जिसमें उनकी नियमित आय का जरिया अमूमन बंद हो चुका होता है। खासतौर पर जिन लोगों के पास संगठित क्षेत्र में काम करने की सुविधा नहीं रही होती है, उसमें भी संतोषजनक राशि की पेंशन नहीं होती है।

बीमार बुजुर्ग के साथ नहीं होता अच्छा व्यवहार

इसलिए आमतौर पर अपने न्यूनतम जरूरतों के खर्च के लिए भी वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर होते हैं। ऐसे मामले छिपे नहीं हैं, जिनमें बीमार होने की स्थिति में किसी बुजुर्ग के साथ उनके परिजन अच्छा व्यवहार नहीं करते या कई बार उन्हें बोझ मानने लगते हैं और उनकी उपेक्षा करते हैं। ऐसे में इस बात की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही थी कि देश की बुजुर्ग आबादी की सेहत पर ध्यान देने के लिए सरकार अपनी ओर से कोई ठोस पहल करे।

कुछ समय पहले आए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया था कि शहरी इलाकों में रहने वाले लगभग पचास फीसद बुजुर्ग आर्थिक मुश्किलों और अन्य तरह की चुनौतियों की वजह से जरूरत के वक्त चिकित्सकों के पास नहीं जा पाते हैं। ग्रामीण इलाकों में यह समस्या ज्यादा व्यापक है, जहां बासठ फीसद बुजुर्गों के सामने आर्थिक और अन्य बाधाएं खड़ी होती हैं, जिनकी वजह से उन्हें बीमारी की स्थिति में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में यह एक दुखद सामाजिक हकीकत है कि कई बार पारिवारिक उपेक्षा के शिकार बुजुर्गों को सरकार की ओर से भी सामाजिक सुरक्षा के रूप में कोई विशेष सुविधा नहीं मिल पाती है।

स्वास्थ्य को लेकर लोगों को सबसे ज्यादा चिंता

ऐसे में केंद्र सरकार ने जिस आयुष्मान भारत योजना के दायरे में सत्तर वर्ष या इससे ज्यादा के बुजुर्गों को भी लाने की घोषणा की है, उसके बाद न केवल सहायता का एक रास्ता तैयार होगा, बल्कि बुजुर्गों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में भी बदलाव आने की उम्मीद पैदा होगी। कहा जा सकता है कि जीवन के जिस दौर में व्यक्ति को सबसे ज्यादा चिंता अपने स्वास्थ्य खर्च को लेकर होती है, उसे दूर करने की दिशा में सरकार ने एक अहम फैसला लिया है।