अगस्ता वेस्टलैंड से हेलिकॉप्टर खरीद में हुई अनियमितताओं और विजय माल्या के कर्ज घोटाले की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित किया गया है। इस दल की अगुआई एक अतिरिक्त पुलिस निदेशक को सौंपी गई है। इन मामलों में जांच की रफ्तार धीमी होने के कारण सरकार को यह फैसला करना पड़ा। माना जा रहा है कि विशेष जांच दल गठित होने के बाद जल्दी ही दोनों मामलों में संलिप्त रसूख वाले लोगों के नाम उजागर हो सकेंगे। अगस्ता वेस्टलैंड की आनुषंगिक कंपनी फिनमेकैनिका से बारह उच्च तकनीक वाले हेलिकॉप्टरों की खरीद का छत्तीस सौ करोड़ रुपए का सौदा हुआ था।
कुछ हेलिकॉप्टर भारत को सौंप भी दिए गए थे, मगर इसी बीच अगस्ता वेस्टलैंड ने आरोप लगाया कि इस सौदे में तत्कालीन सरकार के कुछ नेताओं और अधिकारियों को रिश्वत दी गई है। उसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, तत्कालीन रक्षामंत्री और कांग्रेस के कुछ नेताओं के नाम उजागर हुए थे। तब यूपीए सरकार ने सौदा रद्द कर दिया और मामले की सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे। इसी सिलसिले में इटली की अदालत में मुकदमा चला और उसकी जांचों में भी अगस्ता वेस्टलैंड के कुछ आरोपों को सही पाया गया। फिर संसद में इस मामले को लेकर काफी हंगामा हुआ। मगर अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इस सौदे में किन लोगों को रिश्वत दी गई। ऐसे में विशेष जांच दल के गठन से सही तथ्य उजागर होने की उम्मीद जगी है।
इसी तरह किंगफिशर कंपनी के मालिक विजय माल्या पर नियम-कायदों को धता बताते हुए विभिन्न बैंकों से बड़े पैमाने पर कर्ज लेने का तथ्य उजागर हुआ। जब उनसे कर्ज वसूली के लिए दबाव बनना शुरू हुआ तो वे देश छोड़ कर भाग खड़े हुए। वहां से वे कर्ज चुकाने के लिए अपनी शर्तें रखते रहे। इस तरह इन दोनों मामलों को लेकर लोगों में यह संदेश गया कि राजनीतिक रसूख वाले लोग अपने लाभ के लिए नियम-कायदों की परवाह नहीं करते। उन्हें सार्वजनिक धन की लूट या फिर अपव्यय से कोई गुरेज नहीं। यह छिपी बात नहीं है कि रक्षा सौदों में रिश्वत का खुलेआम लेन-देन होता है। यह तथ्य कई मौकों पर उजागर हो चुका है और सलाह दी जाती रही है कि रक्षा सौदों को पारदर्शी बनाने के उपाय किए जाने चाहिए। मगर इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं हो पाया।
इसी तरह रसूखदार लोगों को कर्ज देते वक्त बैंकों के नियम-कायदों की अनदेखी और कर्ज वसूली में शिथिलता छिपी बात नहीं है। अब अनेक आंकड़े उजागर हैं, जिनमें बड़े उद्योगपतियों, राजनीतिक प्रभाव वाले लोगों ने बड़े पैमाने पर कर्ज लिए और उसे समय पर नहीं चुकाया। इसके चलते बैंकों का बट्टाखाता और घाटा लगातार बढ़ता गया है। जाहिर है, ऐसे कर्ज देने में बैंकों के बड़े अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत होती है। विजय माल्या को दिए गए कर्ज के ब्योरे हैरान करने वाले हैं कि किस तरह उन्हें पात्रता न होने के बावजूद कई बैंकों ने बड़े पैमाने पर कर्ज दिए। जांच से पता चल सकेगा कि इसमें किन अधिकारियों और राजनेताओं की संलिप्तता थी। हालांकि अनेक मामलों में विशेष जांच दल गठित किए जाते रहे हैं, मगर उनकी जांचों पर राजनीतिक प्रभाव अक्सर देखा गया है। ऐसे में अपेक्षा की जाती है कि ताजा जांच दल किसी राजनीतिक दबाव या प्रभाव में आए बिना काम करे और निष्पक्ष रूप से अपनी रिपोर्ट पेश कर