महानगरों में सड़कों पर अक्सर लगने वाले जाम से लोगों को परेशानी होती है, लेकिन आमतौर पर इसे यातायात प्रबंधन में कमी से जोड़ दिया जाता है। इसके अलावा, जाम के नतीजे में ज्यादा पेट्रोल-डीजल बर्बाद होने और प्रदूषण फैलने के आंकड़े सामने आने लगते हैं। लेकिन जाम से जुड़े इस सबसे अहम पहलू को शायद जान-बूझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है कि आखिर सड़क पर इतनी ज्यादा तादाद में वाहनों के होते हुए हम सहज आवाजाही की उम्मीद कैसे कर सकते हैं!

शायद इसी के मद्देनजर पिछले दिनों दिल्ली से सटे गुड़गांव में कार-मुक्त दिवस का आयोजन किया गया था। पहला आयोजन होने की वजह से इसकी कामयाबी भले सीमित रही, लेकिन उसने अपना एक संदेश जरूर छोड़ा। अब गुरुवार को दिल्ली में भी कार-मुक्त दिवस का आयोजन किया गया। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने जिस तरह साइकिल चला कर यहां के लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश की है, वह स्वागतयोग्य है।

आए दिन दिल्ली की मुख्य सड़कों पर लगने वाले जाम की वजह से न केवल नाहक तेल की खपत होती है, प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, बल्कि लोगों का रोजाना औसतन डेढ़ से दो घंटे वक्त जाया होता है। अच्छा है कि अब दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में भी कारों की तादाद में बेलगाम बढ़ोतरी से निपटने की कोशिश शुरू हुई है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में सड़कों पर बढ़ती कारों और कहीं आवाजाही के लिए निजी वाहनों के इस्तेमाल को जाम की सबसे बड़ी वजह के रूप में काफी पहले चिह्नित किया जा चुका है। 1994 में पहली बार स्पेन में हुए एक सम्मेलन में ‘कार मुक्त दिवस’ मनाने का आह्वान किया गया था।

उसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस और यूरोप में फैलते हुए यह दिवस दुनिया के कई देशों में काफी लोकप्रिय हुआ। हमारे देश में शुरुआती दौर में इस पहल का समर्थन सीमित है, लेकिन इस ओर कदम बढ़ाने में खुद सरकार और पुलिस प्रशासन की भागीदारी उम्मीद जगाती है। इसके बावजूद इसकी कामयाबी इस बात पर निर्भर है कि कहीं भी आने-जाने के लिए कारों का इस्तेमाल करने वाले लोग इस अभियान के प्रति कितना उत्साह दिखाते हैं।

एक अनुमान के मुताबिक अकेले दिल्ली की सड़कों पर तकरीबन चौदह सौ नई कारें हर रोज उतरती हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस शहर में पहले से मौजूद पचहत्तर लाख से ज्यादा कारों में जुड़ती यह संख्या दिल्ली की सड़कों के लिए कितना बड़ा बोझ बन रही है। दिल्ली में जिस वक्त एक खास इलाके में कार-मुक्त दिवस का आयोजन हो रहा था, उसमें आने-जाने के लिए हर तीन से पांच मिनट पर बसें उपलब्ध थीं और सार्वजनिक परिवहन के अतिरिक्त इंतजाम भी किए थे।

अगर सामान्य दिनों में इस तरह की व्यवस्था हो तो बहुत सारे लोग यों ही निजी वाहनों के उपयोग को प्राथमिकता नहीं देंगे। जाहिर है, सड़कों पर सहज यातायात की कल्पना को साकार करने के लिए लोगों को निजी वाहनों के बजाय जितना साइकिल चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, उससे ज्यादा यहां सार्वजनिक परिवहन के समूचे तंत्र को अधिक भरोसेमंद बनाने की जरूरत है। इसके बगैर इस तरह की पहल कोई ठोस और टिकाऊ नतीजे नहीं दे सकेगी।

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